Hindi Kavita
हिंदी कविता
" अकेला रहने लगा हूँ"
अब तो अक्सर अकेला रहने लगा हूँ,
खुद से ही सारी बात करने लगा हूँ।
खाली इस कमरे में बस मेरी आवाज है,
लगता है हरदम बस वही पास है,
तन्हाइयों में होती है खुद ही से गुफ्तगू,
शायद कुछ अच्छा हो बस यही आस है।
कठिन बहुत है जिंदगी का सफर,
जब भी देखता हूँ खिड़की से झाँककर,
लगता है शायद आज कोई मिलने हो आया,
जिसको मिलना मुझसे लगता न हो जाया।
अभी नहीं शायद मेरे न रहने पर आए,
कुछ बातें कर दो आँसू बहाये,
इसलिए हर दर्द सहने लगा हूँ,
अब तो अक्सर अकेला रहने लगा हूँ।।
अभिषेक मिश्र -