Hindi Kavita
हिंदी कविता
"में ज़रूर मिलूंगा"
सुनो दिकु...
में एकबार तुम्हें ज़रूर मिलूंगा
साथ में ना सही
पास में ना सही
मेरे अंतर्मन के विश्वास में
साथ बिताए हुए पलों के एहसास में
किसी किताब के पन्नो में
ज़मीन पर बहते हुए झरनों में
हवाओं में झूलती हुई शाख में
स्मशान की जलती हुई राख में
तुम जो ना कह पाई वह आखरी शब्दों में
तुम्हारी आँखों से कभी बहते हुए अश्क़ों में
अंतिम समय में चल रहे मेरे वनवास में
मेरी यादों के साथ तुम्हारी निकलती हुई सांस में
शरीर छोड़कर तुम्हारे आसपास फूलों में खिलूंगा
हाँ दिकु,
में एकबार तुम्हें ज़रूर मिलूंगा
*प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए*
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