प्रेम - अभिषेक मिश्र | Prem - Abhishek Mishra

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"प्रेम"

कोई इसे न समझ पाया,
कितनों का इसने है साथ निभाया।
जब जानी सबने जीवन की सच्चाई,
तो समय फिर से न हाथ आया।
                
               देखते हैं लोग इसमें लाभ और क्षति,
               उनको क्या पता ये है अनुभूति।
               ये तो है मिलता सबकी दुआओं में,
               है ये फैला इन फिजाओं इन हवाओं में।

जिसे भी लिए इसने अपने आगोश में,
फिर वो कहाँ रह पाया है होश में।
ये तो है ज़िन्दगी का दर्पण,
करना पड़ता बहुत कुछ समर्पण।
                
              बिना इसके न जीवन में कोई मिठास,
              ये तो है एक खूबसूरत से एहसास।
              इसी से जीवन के सभी सुख और चैन,
              ये है एक भाव इसे कहते हैं प्रेम।।
                        
अभिषेक मिश्र -

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