खुशियाँ हमारी - अभिषेक मिश्र | Khushi Hamari - Abhishek Mishra

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"खुशियाँ हमारी"

जाने कैसी बेबसी है, कैसी ये मोहब्बत है?
जिसमें सिर्फ एक को चुकानी हर कीमत है।

जीवन की इस भीड़ में उनसे हुई मुलाकात ,
कभी था सब खुशनुमा सा तो कभी बिगड़े हालात।
मोहब्बत के इस सुहाने सफर में साथ चले दिन रात,
कभी रुठ गए वो हमसे तो कभी हुई उनसे बात।।

हालात हैं ऐसे अब खुद को ही समझाना पड़ रहा है,
चाहते न थे जो कभी उसी को चाहना पड़ रहा है।
सोचा न था सपने में भी,उसी को निभाना पड़ रहा है,
सब पास होते हुए खुद से ही दूर जाना पड़ रहा है।

बस उन्हीं को चाहते रहना, क्या कमी है हमारी?
हर पल हर क्षण बस सूरत उन्हीं की निहारी।
कहते हैं बाद में कैसे आदत जाएगी तुम्हारी,
उन्हीं से मुस्कुराहट उन्हीं से खुशियाँ हमारी।।
                        
अभिषेक मिश्र -

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