Hindi Kavita
हिंदी कविता
"हम हैं बेरोजगार"
जीवन के सारे दिन जैसे लगते है इतवार,
द्वंद उठता अंतर्मन में होती है टकरार,
इसीलिए तो कहते हैं हम हैं बेरोजगार।
सरकारी रिजल्ट की वेबसाइट देखते बार बार,
शायद नई भर्ती का विज्ञापन आया हो इस बार।
हर बार मिलती मायूसी मन जाता फिर से हार,
इसीलिए तो कहते हैं हम हैं बेरोजगार।
रोजगार की चाहत में हम सब ने लायी ये सरकार,
सोचा था भर्ती देकर करेंगे सपना ये साकार।
ये तो सबसे आगे निकले गया वोट बेकार,
इसीलिए तो कहते हैं हम हैं बेरोजगार।
अगली बार जब वोट मांगने आएंगे वो द्वार,
फिर तुम सबके सामने माँगना अपना अधिकार।
कहना उनसे नहीं चलेगा अब उनका अत्याचार,
इसीलिए तो कहते हैं हम हैं बेरोजगार।।
अभिषेक मिश्र -