Hindi Kavita
हिंदी कविता
"ऐ मुसाफिर"
ऐ मुसाफिर हमसे दूर जाने वाले,
लौटकर कभी फिर न आने वाले,
आओ तुम्हें इस कदर देख लूं,
उम्र भर को इन आँखों में रख लूं।।
पास बैठो तो सारी दुनिया घूम लूँ,
रख हाथों में हाथ उंगलियां चूम लूँ,
फिर न जाने कब मिलें हम कहाँ?
तुम बिन तो सूना लगेगा जहाँ।।
तुम जाते न शायद तो अच्छा होता,
गर हमारा भी ये प्यार सच्चा होता,
कहते तो थे सब कुछ मैं ही तुम्हारा,
हुआ क्या ऐसा अब मिलना भी न गंवारा।।
जब आँखों में यही है अरमान लिया,
दूर जाने का ही तुमने ठान लिया,
फिर जाओ मुझे भी नहीं कुछ बताना,
न आया कभी कुछ भी जताना।।
जो भी था दिल में न आया दिखाना,
उस तलब को अब अंदर है दफनाना,
मुश्किल है कितना इस दर्द को छिपाना,
क्योंकि अपनों के लिए तो है मुस्कुराना।।
अभिषेक मिश्र -