विज्ञान - अभिषेक मिश्र | Vigyan - Abhishek Mishra

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"विज्ञान"

दृष्टि जिस ओर भी जाती है,
ज्ञान की माया नजर आती है।
हर क्षण, हर दिन ,हर लम्हे में,
मिलता हमें विज्ञान है।
चिरसंगी बन चुका हमारा,
सब कुछ इसके ही हाथ है।
शिक्षा,स्वास्थ्य, हवा और पानी,
सब इसके ही  तो हाथ है।
अंतरिक्ष यान बनकर के इसने,
चाँद को भी संग किया है।
ब्रह्मांड के अनादि मौन को,
इसने आज भंग किया है।
वियावान को चमन बनाता,
बस्ती को मरुस्थल।
जल को थल है बनाता,
और बनाता थल को जल।
कभी निशीथ है ये गर तो,
कभी होता दिव भी है।
यदि परिपालक विष्णु है,
तो संहारी शिव भी है।
मानव की निरीह इन्द्रियों को,
दिया अनन्त शक्ति का ज्ञान है।
शत-शत प्रणाम है इसको,
धन्य हमारा विज्ञान है।।


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