Hindi Kavita
हिंदी कविता
"सपनों में आओगे"
अधरों पर थी मधुर स्मिता
केश हवा में लहराये।
पैरों के नूपुर छन-छन-छन ,
हमसे कुछ कहने आए।।
"अजी!सुनो, क्यों नज़र छिपाए,
बिना बताए जाते हो।
है कोई विशेष हमसे भी,
या हमसे शरमाते हो।।"
तुम ही जीवन धन मेरे हो,
हमसे यूं शरामाना क्या?
सौंप दिया पतवार तुम्हें फिर,
तूफानों से घबराना क्या?
भूल गई मैं तो तुमसे मिल,
कुछ जो आज बताना था।
मम्मी ने था कहा शाम को,
उनसे तुम्हें मिलाना था।।
हां जी! सुनो मम्मी ने मेरी,
एक सन्देश कहाया है।
छोटी का है आज जन्मदिन,
तुमको भी बुलवाया है।।
"बोलो ना? आओगे तुम भी,
फिर तो खूब सजूंगी मैं,
बिंदिया लगाके, साड़ी पहने,
दुल्हन खूब लगूंगी मैं।।
मेरा सब साजो श्रृंगार है,
प्रियतम बस तुमसे ही ।
शून्य सभी है बिना तुम्हारे,
जीवन भी तुमसे ही।।
आओगे जब तुम मेरे घर,
सबसे तुम्हे मिलाऊंगी।
पापा! ये मेरे सजना हैं,
मम्मी से मिलवाऊंगी।।
छुटकी! ये तेरे जीजू हैं,
सुनकर कितना खुश होगी।
तुम्हें खिलाऊंगी, अपने हाथों
से क्या किस्मत होगी।।
जिसको तस्वीरों में देखा,
आज सामने पाऊंगी।
मैं खुद चरण धूलूंगी उनके,
खुद ही चंवर डुलाऊंगी ।।
आज शाम कितनी हसीन,
होगी जब तुम आओगे।
"सुनती हो!"कहकर मुझको,
अपने पास बुलाओगे।।
जिस थाली में तुम खाओगे,
उसमे मैं भी खाऊंगी।
पाकर के प्रसाद प्रियतम का,
मैं भी धन्य हो जाऊंगी।।
और फिर "सुनो जरा!"कहकरके,
मुझको तुम बुलवाओगे।
मुझको जाना है कहकर फिर,
मुझको खूब रुलाओगे।।
गले लगाकर, अश्रु पोंछ कर
माथे को चूमोगे।
बालों को थोड़ा सहलाकर,
रूह को छू लोगे।।
फिर सबसे मिलकर खुश होकर,
अपने घर को जाओगे।
सो जाऊंगी तुम्हें याद कर,
सपनों में तुम आओगे।।
अभिषेक मिश्र -