संगम - अभिषेक मिश्र | Sangam - Abhishek Mishra

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"संगम"

आज एक झलक उनको देखा,
चंचल मन  होश गँवा बैठा ।
बस यूँ गए फिर नयनों में वो,
पूरी दुनिया को जैसे भुला बैठा।

मैंने देखा उनको इधर उधर,
मुस्काये जाने किधर किधर,
उनकी बाहों में दिखती मंजिल,
उनके सिवा कुछ न आये नजर।

होती ही रहती है उनकी फिक्र,
पर होता है अब बस गैरों से जिक्र,
बातें है हजार उनमें है कुछ जरूरी,
गर हुई न पूरी तो रह जाएंगी अधूरी।

रात दिन जो दिखते थे हुए अब दूर,
दूर जाने को हमसे शायद थे वो मजबूर,
वो बिंदिया वो झुमके वो आँखों का काजल,
जो थे हमारी ख़ुशियों के हर पल।

किसी के भी सामने खुलते न थे अधर,
उनसे मिलने के बाद स्वर हुए थे मुखर,
बातें होती फिर उनसे निशि और वासर,
उनकी यादों के संग है सुहाना सफर।

याद आएगी जब भी आँख होगी ये नम,
दूर जाने से क्या याद होगी ये कम,
आएंगी खुशियां क्या जाएगा गम,
क्या होगा फिर से दो दिलों का संगम।।
                        
अभिषेक मिश्र -

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