Hindi Kavita
हिंदी कविता
"प्रकृति"
आदिमानव ने जब धरा पर,
किया नेत्र उन्मीलन।
दुलार भरी गोद से उसका,
कभी मृदु समीर ने उसको,
अपने झूले में झुलाया।
तो कभी वीचियों ने उसको ,
अपनी गोद में सुलाया।
कभी अरुण ने अनुराग से,
रंजित आलोक प्रदान किया।
तो कभी इंदु रश्मियों ने,
उसका चारु चुम्बन किया।
परन्तु प्रकृति के जिस क्रोण में,
मानव ने कभी शयन किया।
अपनी बुद्धि के अहम में,
व्यर्थ उसका व्ययन किया।
जब जब धरा पर मानव को ,
कर्त्तव्यों का होता न बोध है।
तब तब भिन्न आपदाओं से,
प्रकृति लेती प्रतिशोध है।।