Hindi Kavita
हिंदी कविता
"नयन तुम मिलाना"
व्योम की चन्द्र ज्योत्स्ना, भ्रमरों के मधुर गुंजार में,
कोकिल की कूज, पवनों की सुंगंधित बयार में।
कल-कल झरनों के बहने,कूलनकशा के प्रसार में,
तुम ही तुम दिखते हो मुझको अब तो इस संसार में।
तुम न थे तो ये आँखें जैसे मुरझाई सी थी,
कोई न था पास जीवन में जैसे तन्हाई सी थी।
आये जो तुम ये आँखें मेरी जैसे खिल सी गयी,
बिखरी हुई दो नदियों की धारा जैसे मिल सी गयी।
महक हवा में बिखरने से पूर्व प्रसून पर ही तो रह जाती है,
जाह्नवी उदधि में मिलने से पूर्व कितनों को पावन कर जाती है।
बात कितनी हो या जितनी भी हो,कुछ बात तो रह जाती है,
अधर हों न मुखर भले ही पर आँख ही बात तुम्हारी कह जाती है।
बाँधना है नहीं वादों में कहीं बस यादों में मेरी उम्र भर रह जाना,
जाने फिर कब कैसे मिलें हम, मुश्किल बड़ा है खुद को समझाना,
चंचला तुम दूर जाने से पहले नयनों में तुम ऐसे रह जाना,
ठहरना कुछ पल बाहों में फिर नयनों से मेरे नयन तुम मिलाना।
अभिषेक मिश्र -