मंजिल - अभिषेक मिश्र | Manzil - Abhishek Mishra

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"मंजिल"

रोजगार पाने की चाहत में छोड़ चले सब अपना घर,
सोचा था भर्ती आएगी और बनेंगे हम सब टीचर।
पर इस भ्रष्टाचार में इतनी आसान नहीं है ये डगर,
परीक्षा होने से पहले ही आउट हो जाता है  पेपर।

अब तो हर दिन हर क्षण सबको सताए यही डर,
अगर सफल न हुए तो क्या लेके जाएंगे अपने घर।
लेकिन जब हमने दृढ़ निश्चय से चलना ठान लिया,
जीत हो या हार हो बस कर्म को अपने जान लिया।

तो फिर रास्ते में आये तूफानों से क्या करना है?
मन में बस एक ही निश्चय कि चलते रहना है।
अंतर्मन में उठता ही रहता दुःख का शोर है,
अंदर से आवाज़ है आती विकल्प न कोई और है।

चलते चलते खुद को बस यही समझाते रहना है,
कठिन परिश्रम ही है करना यदि सफल होना है।
संघर्षों के इस दुष्कर पथ में बस इतनी सी आस है,
एक न एक दिन मिलेगी मंजिल मन में दृढ़ विश्वास है।।
                        
अभिषेक मिश्र -

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