हम ही तन्हा रह गए- अभिषेक मिश्र | Hum hi tanha rah gaye - Abhishek Mishra

Hindi Kavita

Hindi Kavita
हिंदी कविता

abhishek-mishra-ki-kavita

"हम ही तन्हा रह गए"

मुरझाये हुए फूल कभी खिलते हैं क्या?
समंदर के दो किनारे कभी मिलते हैं क्या?
अपने थे जो अब सभी चले गए,
ऐसा लगता है हम ही तन्हा रह गए।

दिल मे उल्फत के तूफ़ां उठेंगे तब तब,
याद वो ज़िंदगी में आएंगे जब जब,
दिल के ख्वाब आँसुओं में बह गए,
ऐसा लगता है हम ही तन्हा रह गए।।

बिना उनके मुश्किल भरा है सफर,
उनको तो मिला कोई दूजा हमसफ़र,
हमें मिले तो बहुत पर सबसे न कह गए,
ऐसा लगता है हम ही तन्हा रह गए।।

खुदा ने लिखा कुछ ऐसा नसीब,
जो थे दिल के बेहद करीब,
गुम हुए ऐसे हम ढूँढते ही रह गए,
ऐसा लगता है हम ही तन्हा रह गए।।
                        
अभिषेक मिश्र -

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!