Hindi Kavita
हिंदी कविता
"गुरुवर"
विद्या का अतुल धाम, पावन पुनीत नाम,
इस संस्थान को हरा भरा स्वरक्त से ही,
इस उपवन के श्रेष्ठ तरु आप हो।
कुछ दिन मात्र हम रह पाए तव शरण,
जान सके इतना विशिष्ट शिष्ट आप हो।
देखा नदियों का मधुर मिलन भी,
चाहे उत्तर से दक्षिण की माप हो।
देखा भूमि - व्योम और पाताल लोक को,
चाहे पर्वत की शीतलता हो चाहे सूर्यताप हो।
देखा पृथ्वी का सारा बल और अक्षांश को,
वर्षा की मोती सी बूँदें चाहे वह जलवाष्प हो।
देखा आँधी ,तूफान और झंझा,
टॉरनेडो हो चाहे वह चक्रवात हो।
किया हम सब के ज्ञान चक्षु को उन्मीलित ,
ब्रह्म की अनूठी सृष्टि देव मात्र आप हो।।
"पृथ्वी पर ले अवतरण, लिया मही का ज्ञान।
है प्रणाम गुरुवर तुम्हें, श्री शैलेंद्र महान।। "