Hindi Kavita
हिंदी कविता
"दुआ"
काफी अरसे बाद था मुझको करार,
इन आँखों को हुआ था उनका दीदार।
दिल में था एक अजीब सा सुकून,
आँखों मे उनकी चाहत का जुनून।
एक उनकी सूरत और कुछ नजर न आया,
कहना था बहुत कुछ मगर कह कुछ न पाया।
वक़्त कितना जालिम कि ठहर भी न पाया,
न देखा उनको ठीक से न गले ही लगाया।
अधर हमारे खामोश हुए फिर ऐसे,
अंधेरी रातों का सन्नाटा हो जैसे।
पूछना था उनसे खफा क्यूँ है हमसे,
पर कुछ भी कहा न गया फिर हमसे।
आंखे हमारी कहानी बता रही थी,
मैं उसे वो मुझे ऐसे समझा रही थी।
पर शायद हमारी ही नजर गयी,
अचानक उनकी तबियत बिगड़ गयी।
फिक्र तो बहुत पर जताए भी कैसे,
दिल में है बहुत कुछ दिखाए भी कैसे।
सोचता हूँ तो ये आँख भर आती है,
उनसे दिल का रिश्ता बड़ा जज्बाती है।
जो भी चाहें उन्हें वो सब मिल जाये,
ज़िन्दगी भर कभी कोई गम न आये।।
दुख,दर्द जीवन में कोई न आये,
दुआ हमारी वो हमेशा मुस्कुराये।।
अभिषेक मिश्र -