अब तो वो सेंटी बुलाते है मुझको - अभिषेक मिश्र | Ab to woh - Abhishek Mishra

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"अब तो वो सेंटी बुलाते है मुझको"

हाल अपना, सुनो सुनाते है तुमको,
चुपके से दिल मे छिपाते हैं जिसको
निःस्तब्ध और शांत हो जाता हूँ,
अब तो वो सेंटी बुलाते हैं मुझको।

मुझमें है स्वर मगर हूँ मैं मौन,
स्नेह को मेरे अब समझेगा कौन।
हाल-ए-दिल बताते होंगे किसको,
अब तो वो सेंटी बुलाते है मुझको।

कुछ दिन पहले की है ये कहानी,
पर शायद थी ये हमारी नादानी।
दिल के कोने में बिठाया था जिनको,
अब तो वो सेंटी बुलाते है मुझको।

लगता है  कभी कि क्या चल रहा है,
जैसे हृदय से कुछ निकल सा रहा है।
उनके ये शब्द सताते हैं हमको,
अब तो वो सेंटी बुलाते हैं मुझको।

अंतर्मन अब जैसे टूट रहा है,
किनारा सागर से छूट रहा है।
याद बहुत वो आते हैं हमको,
अब तो वो सेंटी बुलाते है हमको।

                        
अभिषेक मिश्र -

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