क्यों - सुव्रत शुक्ल | Kyo - Suvrat Shukla

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"क्यों"

इक नज़र देखा, न पाया, न छुआ,
दिल बता, तू फिर उसी का क्यों हुआ?

रफ्ता - रफ्ता काटता हूं क्यों सफ़र,
रफ्ता - रफ्ता गूंजता है क्यों धुआं?

गूंजते क्यों लफ्ज़ उनके हर तरफ़,
उन लबों से धड़कनों को क्यों छुआ?

यूं मोहब्बत हो गई सोचा न था,
फिर उन्हीं से ही बिछड़ना क्यों हुआ?

अब कहूं पत्थर से हैं मेरे सनम,
या कहूं दरिया- सा मैं ही बह गया।

एक चाहत थी मिलन की आखिरी,
ख्वाब यूं 'मोहन'अधूरा क्यों हुआ?

जिनसे था मिलना मुकद्दर में नहीं,
तो उसी से दिल लगाना क्यों हुआ?

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