"क्यों"
इक नज़र देखा, न पाया, न छुआ,दिल बता, तू फिर उसी का क्यों हुआ?
रफ्ता - रफ्ता काटता हूं क्यों सफ़र,
रफ्ता - रफ्ता गूंजता है क्यों धुआं?
गूंजते क्यों लफ्ज़ उनके हर तरफ़,
उन लबों से धड़कनों को क्यों छुआ?
यूं मोहब्बत हो गई सोचा न था,
फिर उन्हीं से ही बिछड़ना क्यों हुआ?
अब कहूं पत्थर से हैं मेरे सनम,
या कहूं दरिया- सा मैं ही बह गया।
एक चाहत थी मिलन की आखिरी,
ख्वाब यूं 'मोहन'अधूरा क्यों हुआ?
जिनसे था मिलना मुकद्दर में नहीं,
तो उसी से दिल लगाना क्यों हुआ?