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हिंदी कविता
Vaajshrava Ke Bahane - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - वह उदय हो रहा है पुनः
वह उदय हो रहा है पुनः
वह उदय हो रहा पुनः
कल जो डूबा था
उसका डूबना
उसके पीठ पीछे का अन्धेरा था
उसके चेहरे पर
लौटते जीवन का सवेरा है
एक व्यतिक्रम दुहरा रहा है अपने को
जैसे प्रतिदिन लौटता है नहा धो कर
सवेरा, पहन कर नए उज्ज्वल वस्त्र,
बिल्कुल अनाहत और प्रत्याशित
इतनी भूमिका इतना उपसंहार
पर्याप्त है
मध्य की कथा-वस्तु को
पूर्व से जोड़े रखने के लिए।
उसके चेहरे पर उसकी लटों की
तरु-छाया है-
उससे परे
उसकी आँखों में
वह क्षितिज
जो अब उससे आलोकित होगा।
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