कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - असंख्य नामों के ढेर में

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Vaajshrava Ke Bahane - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - असंख्य नामों के ढेर में

असंख्य नामों के ढेर में
असंख्य नामों के ढेर में
क्या है उसका नाम?
क्या है उसका पता?
क्या है उसका समय ?

उसका नाम एक मौन है
जो उच्चारित नहीं किया जा सकता :
उसका पता
एक मन की दिशाहीन यात्रा है :
और उसका समय एक अनुपस्थिति
जिसका कोई आयाम नहीं।

यह केवल एक-पृष्ठ की किताब है
दोनों ओर से काली ज़िल्दों से बँधी,
वह बीच ही से खुलती
और बीच ही में बन्द हो जाती।

उसके मुख-पृष्ठ पर
सुनहले अक्षरों से लिखा है. पहला प्रभात!
यही उसका पूरा नाम
पता
और समय है!

अपरिचय की
एक पारदर्शी दीवार
तब भी थी उनके बीच
जो समय के साथ धीरे-धीरे
बदलती चली गयी दोनों तरफ से
एक ठोस अपारदर्शी दर्पण में,

पहले वे देख रहे थे एक दूसरे को
अब केवल अपने को देख पा रहे थे
दूर तक अपने अतीत में
जो एक ऊबड़-खाबड़ पठार की तरह
फैला था।

तब भी उन तक
उनके शब्दों की ध्वनियाँ और अन्तर्ध्वनियाँ नहीं
केवल उनकी आकृतियाँ पहुँचा पा रही थीं
संकेत-चिह
जिन्हें वे ग़लत पढ़ते रहे।

टकराहटें भी वहीँ हैं
जहाँ निकटताएँ हैं :
जहाँ कन्धे मिला कर दौड़ती
स्पर्धाओं की रगड़ है
संघर्ष भी वहीं है।

जैसे-जैसे बड़े होने लगते पंख
छोटे पड़ने लगते घोंसले,
उन्हें पूरा आकाश चाहिए
फैलने के लिए
और पूरी छूट उड़ने की।

निकटताओं के बीच भी
ज़रूरी हैं दूरियों के अन्तराल
चमकने के लिए
जैसे दो शब्दों को जोड़ती हुई
ख़ामोश जगहों से भी
बनता है भाषा का पूरा अर्थ
बनता है तारों-भरा आकाश।

बचना होता है ऐसे सामीप्य से
जो नष्ट कर दे दो संसारों को,
जो बदल दे निकटता के अर्थ को
एक घातक विस्फोट में!

इससे अच्छा है रागानुराग की दुनिया से
प्रकाश-वर्षों दूर
किसी विरागी की कुटिया में टिमटिमाता अकेला चिराग!

बजाने से बजता है शून्य भी
जैसे ढोल में बन्द नाद
ब्रह्म हो जाता है,

जैसे वीणा के मूक तन्‍तु
जीवन का स्पर्श पाते ही
बोलने लगते हैं
राग विराग के बोल,
जैसे शब्दों में सुषुप्त स्मृतियाँ
जाग उठती हैं ध्वनियों प्रतिध्वनियों की भाषा में
जब हम अपने अतीत को
सम्बोधित करते। दूर की आवाजें
सम्मिलित हो जातीं
हमारे अन्तर्मन के
अस्फुट मर्मरों में,

और हम आश्चर्य करते
कहीं कुछ भी तो मरा नहीं!

एक विलुप्त सभ्यता के
विदग्ध आत्म-चिन्तन को
उसके अवशेषों में फैली-बिखरी
शब्द-सम्पदा को
ईंट-ईंट जोड़ कर भी पढ़ा जा सकता है
एक नया पाठ।

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