Hindi Kavita
हिंदी कविता
Vaajshrava Ke Bahane - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - अपना यह 'दूसरापन'
अपना यह 'दूसरापन'
कल सुबह भी खिलेगा
इसी सूरजमुखी खिड़की पर
फूल-सा एक सूर्योदय
फैलेगी घर में
सुगन्ध-सी धूप
चिड़ियों की चहचहाटें
लाएंगी एक निमन्त्रण
कि अब उठो-आओ उड़ें
बस एक उड़ान भर ही दूर है
हमारे पंखों का आकाश।
एक फड़फड़ाहट में
समा जाएगा
सारी उड़ानों का सारांश!
और फिर भी
बचा रह जाएगा हर एक के लिए
नयी-नयी उड़ानों का
उतना ही बड़ा आकाश
जैसा मुझे मिला था!
एक महावन हो जाएगा
मन
उसमें एक अन्य ही जीवन होगा
यह विस्थापन,
कोई दूसरा ही मैं होगा
अपना यह दूसरापन
वन में भी जीवन है
जैसे जीवन में भी वन!
यह पटाक्षेप नहीं है
केवल दृश्य-परिवर्तन।