Hindi Kavita
हिंदी कविता
Vaajshrava Ke Bahane - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: वाजश्रवा के बहाने - आह्वान
प्रथम खंड : नचिकेता की वापसी
आह्वान
यह 'आज' भी वैसा ही है
जैसा कोई 'आज' रहा होगा
इस आज से कहीं बहुत पहले।
तब भी पूरी दुनिया को
जीत लेने की हड़बड़ियों से लैस
निकलते होंगे
सजेधजे सूरमाओं के झुंड
और शाम को घर लौटते होंगे पस्त
दिन भर की धूल चाट कर
थकीमाँदी हताशाओं के बूढ़े सिपाही!
याद आतीं वे सुबहें भी
इसी तरह आँखें खोलतीं
ऐसी ही किसी उदासीन पृथ्वी पर
आह्वान करता हूँ
उस अपराजेय जीवनशक्ति का
उसकी प्रकट अप्रकट प्रतीतियों को
साक्षी बना कर
धारण करता हूँ मस्तक पर
एक धधकता तिलक।
और फैल जाता है
दसों दिशाओं में
भस्म हो कर मेरा अहंकार।
लौट आओ प्राण
पुन: हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
लोक में परलोक में
तम में आलोक में
शोक में अशोक में :
लौर आओ प्राण
पुन: हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
तल में अतल में
जल में अनल में
चल में अचल में :
लौट आओ प्राण
पुनः हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
क्षितिज में. व्योम में
तारों के स्तोम में
प्रकट में विलोम में :
लौट आओ प्राण
पुनः हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
फूलों में पत्तियों में
मरु में वनस्पतियों में
अभावों में पूर्तियों में :
लौट आओ प्राण
पुनः हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
जलधि की गहराइयों में
ठिठुरती ऊँचाइयों में
पर्वतों में खाइयों में :
लौट आओ प्राण
पुनः हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
वात में निर्वात में
निर्झर में निपात में
व्याप्ति में समाप्ति में :
लौट आओ प्राण
पुनः हम प्राणियों के बीच
तुम जहाँ कहीं भी चले गये हो
हम से बहुत दूर-
रसों में नीरस में
पृथ्वी में द्यौस् में
सन्ध्या में उषस् में
लौट आओ प्राण...
(यत् ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम् ।
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥
यत् ते दिवं यत् पृथ्वीं मनो जगाम दूरकम्।
तत् त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥
--ऋग्वेद (मानस) 10/58)
यह कैसा विभ्रम?
सुनाई देती हैं
कुछ देर तक
कुछ दूर तक अपनी ही आवाज़ें,
फिर या तो आगे निकल जाती हैं
या पीछे छूट जाती हैं!
एक पुकार की कातरता से
गूँजती हैं दिशाएँ
रात का चौथा पहर है
सुबह से ज़रा पहले का अँधेरा-उजाला
द्विविधा का समय
कि वह था?
या अब होने जा रहा है ?
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