Hindi Kavita
हिंदी कविता
In Dino - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - मद्धिम उजाले में
मद्धिम उजाले में
कभी-कभी एक फूल के खिलते ही
उस पर मुग्ध हो जाता है पूरा जंगल
देखते-देखते फूल-ही-फूल हो जाता है
यह सिज आरण्यक का दूसरा हिस्सा है
उसके पहले हिस्से में फूल नहीं था
न उस पर कोई विमर्श,
केवल एक प्रश्न था
कि जिस बीज में निबद्ध है
पूरे वृक्ष की वंशावली
उसके विकास की तमाम शाखाओं प्रशाखाओं,
जातियों प्रजातियों,
चक्रों कुचक्रों, क्रमों उपक्रमों से
होते हुए कैसे उसके सर्वोच्च शिखर तक पहुँच कर
बची रह पाती है
एक विनम्र सुन्दरता!
किसी दिन
कुम्हलाती-सी आवाज़ में
उसने कहा होगा-अब मुझे जाना है...
विदा कहते ही
अंग-अंग अनेक उपमानों में बदल गई होगी
उसके जाने की एक-एक भंगिमा...
पहले वह गई होगी जैसे सुगंध,
फिर जैसे रूप,
जैसे रस, जैसे रंग,
फिर पंखुरी-पंखुरी बिखर गई होगी
जैसे एक साम्राज्य...
लेकिन जाते-जाते एक बार
उसने पीछे मुड़कर देखा होगा
किसी की कल्पनाओं में छूट गई
अपनी ही एक अलौकिक छवि,
और अपने से भी अधिक सुंदर कुछ देखकर
ठगी-सी खड़ी रह गई होगी
कहीं धरती और आकाश के बीच
एक अस्तव्यस्त छाया-चित्र
किसी पुराकथा के मद्धिम उजाले में...।
एक अधूरी रचना
लौटती है पृथ्वी पर बार-बार
खोजती हुई उन्हीं अनमनी आँखों को-
जो देखती हैं जीवन को जैसे एक मिटता सपना,
और सपनों में रख जाती हैं एक अमिट जीवन।
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