कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - काला और सफ़ेद

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - काला और सफ़ेद

काला और सफ़ेद
सिर्फ दो ही रंग होते हैं
शब्दों की दुनिया में-
काला और सफ़ेद।
दरअसल, काला तो कोई रंग ही नहीं :
और सफ़ेद भी
होता है कई रंगों से मिल मिल कर बना
एक तटस्थ रंग
लेकिन काले का घोर प्रतिवादी,
और यही उसकी ताक़त है।

काला जिस सचाई को ढंकता
सफ़ेद उसके बीच से बोलता रहता-
-दबी ज़बान-कभी खुल कर-
मानो गवाही दे रहा हो
भरी अदालत में
काले के ख़िलाफ़

सफ़ेद स्वभाव से विनम्र
लेकिन प्रभाव में तीखा है।
उसकी निडर सादगी
खादी की तरह
कपट को ओढ़ने से इनकार करती,
कभी कभी तो लगभग पारदर्शी हो जाती
नंगई के ख़िलाफ़
और चीख़ने लगती उसकी उज्जवलता
जैसे सूरज की रोशनी!
सभी चाहते कि शब्दों के बीच
सचाई को ज़्यादा-से-ज़्यादा जगह मिले...

लेकिन परेशान हैं इन दिनों :
काले की जगह
सफ़ेद नामक झूठ ने ले ली है
और दोनों ने मिल कर
एक बहुत बड़ी दूकान खोल ली है!

रोज़ धड़ल्ले से उनके रंगबिरंगे विज्ञापन छपते
कि झूठ कुछ नहीं
सिर्फ सच को ढँकने की कला है :
ज़िन्दगी का कारोबार
झूठ-सच की लीपापोती पर चला है।
 

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