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In Dino - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - चन्द्रगुप्त मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य
अब सुलह कर लो
उस पारदर्शी दुश्मन की सीमाहीनता से
जिसने तुम्हें
तुम्हारे ही गढ़ में घेर लिया है
कहाँ तक लड़ोगे
ऐश्वर्य की उस धँसती हुई
विवादास्पद ज़मीन के लिए
जो तुम्हारे पाँवों के नीचे से खिसक रही?
अपनी स्वायत्तता के अधिकारों को त्यागते ही
तुम्हारे शरीर पर जकड़ी जंज़ीरें
शिथिल पड़ जाएँगी। तुम अनुभव करोगे
एक अजीब-सा हल्कापन।
उस शक्ति-अधिग्रहण को स्वीकार करते ही
तुम्हें प्रदान किया जाएगा
मैत्री का एक ढीला चोला-
एक कुशा-मुकुट-
सहारे के लिए एक काष्ठ-कोदंड-
और तुम्हारे ही साम्राज्य में दूर कहीं
एक छोटा-सा क़िला
जिसके अन्दर ही अन्दर तुम
धीरे-धीरे इस संसार से विरक्त होते चले जाओगे...
तुम्हारा पुनर्जन्म होगा, सदियों बाद,
किसी अनुश्रुति में, एक शिलालेख के रूप में...
अबकी वर्तमान में नहीं, अतीत में-
जहाँ तुम विदग्ध सम्राटों की सूची में
स्वयं को अंकित पाओगे।
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