कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - अमीर खुसरो

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In Dino - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: इन दिनों - अमीर खुसरो

अमीर खुसरो
हाँ ग़यास, दिल्ली के इसी डगमगाते तख्त पर
एक नहीं ग्यारह बादशाहों को
बनते और उजड़ते देखा है ।
ऊब गया हूँ इस शाही खेल तमाशे से
यह 'तुगलकनामा' - बस, अब और नहीं।
बाकी ज़िन्दगी मुझे जीने दो
सुल्तानों के हुक्म की तरह नहीं
एक कवि के ख़यालात की तरह आज़ाद
एक पद्मिनी के सौंदर्य की तरह स्वाभिमानी
एक देवलरानी के प्यार की तरह मासूम
एक गोपालनायक के संगीत की तरह उस
और एक निज़ामुद्दीन औलिया की तरह पाक।

ग़यास एक स्वप्न देखता है, '' अब्बा जान
उस संगीत में तो आपकी जीत हुई थी ?''

''नहीं बेटा, हम दोनों हार गए थे।
दरबार जीता था।
मैंने बनाये थे जो कानून
उसमें सिर्फ़ मेरी ही जीत की गुंजाइश थी।
मैं ही जीतूँ
यह मेरी नहीं आलमपनाह की ख्वाहिश थी।''

खुसरो जानता है अपने दिल में
उस दिन भी सुल्तानी आतंक ही जीता था
अपनी महफिल में।
भूल जाना मेरे बच्चे कि खुसरो दरबारी था।
वह एक ख्वाब था -
जो कभी संगीत
कभी कविता
कभी भाषा
कभी दर्शन से बनता था
वह एक नृशंस युग की सबसे जटिल पहेली था
जिसे सात बादशाहों ने बूझने की कोशिश की !

खुसरो एक रहस्य था
जो एक गीत गुनगुनाते हुए
इतिहास की एक कठिन डगर से गुजर गया था।
 

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