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Mirza Ghalib ka jivan parichay
मिर्ज़ा ग़ालिब का जीवन परिचय
मिर्ज़ा असदुल्ला बेग खां (27 दिसम्बर 1797 -15 फरवरी 1869) को ग़ालिब से जाना जाता है। ग़ालिब का जन्म आगरा में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था। उनके पिता मिर्ज़ा अब्दुला बेग खां 1803 ई: में अलवर की लड़ाई में मारे गए तथा उनकी माँ इज़्ज़त-उत-निसा बेगम की भी जल्द मृत्यु हो गयी। उन के चाचा मिर्ज़ा नसरुल्ला बेग खां ने उनको पाला। ग़ालिब का जीवनयापन मूलत: अपने चाचा के मरणोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था।
जब ग़ालिब छोटे थे तो एक नव-मुस्लिम-वर्तित ईरान से दिल्ली आए थे और उनके सान्निध्य में रहकर ग़ालिब ने फ़ारसी सीखी। वह उर्दू और फ़ारसी के महान कवि हुए ।
मिर्ज़ा ग़ालिब की शिक्षा
मिर्ज़ा ग़ालिब ने 11 वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी में गद्य तथा पद्य लिखना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में पारंपरिक गीत काव्य की रहस्यमय-रोमांटिक शैली में सबसे व्यापक रूप से लिखा और यह गजल के रूप में जाना जाता है।
मिर्ज़ा ग़ालिब का वैवाहिक जीवन
मिर्ज़ा ग़ालिब की 13 वर्ष आयु में उनका विवाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हो गया था। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गये थे जहाँ उनकी तमाम उम्र बीती। अपने पेंशन के सिलसिले में उन्हें कोलकाता कि लम्बी यात्रा भी करनी पड़ी थी, जिसका ज़िक्र उनकी ग़ज़लों में जगह–जगह पर मिलता है।
मिर्ज़ा ग़ालिब का शाही ख़िताब
1850 में शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय ने मिर्ज़ा ग़ालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के ख़िताब से नवाज़ा। बाद में उन्हे मिर्ज़ा नोशा का ख़िताब भी मिला। वे शहंशाह के दरबार में एक महत्वपूर्ण दरबारी थे। उन्हे बहादुर शाह द्वितीय के पुत्र मिर्ज़ा फ़ख़रु का शिक्षक भी नियुक्त किया गया। वे एक समय में मुग़ल दरबार के शाही इतिहासविद भी थे।
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