Mirza Ghalib Famous Rubaiya | मिर्ज़ा ग़ालिब की रुबाइयाँ
1.
आताशबाज़ी है जैसे शग़्ले-अत्फ़ाल
है सोज़े-जिगर का भी इसी तौर का हाल
था मूजिदे-इश्क़ भी क़यामत कोई
2.
दिल था कि जो जाने दर्द तम्हीद सही
बेताबी-रश्क व हसरते-दीद सही
हम और फ़सुर्दन तजल्ली! अफ़सोस
तकरार रवा नहीं तो तजदीद सही
3.
है ख़ल्क़ हसद क़माश लड़ने के लिए
वहशत-कडा-ए-तलाश लड़ने के लिए
यानी हर बार सूरते-काग़जे-बाद
मिलते हैं ये बदमाश लड़ने के लिए
4.
दिल सख़्त निज़ंद हो गया है गोया
उससे गिलामंद हो गया गोया
पर यार के आगे बोल सकते ही नहीं
“ग़ालिब” मुँह बंद हो गया है गोया
5.
मुश्किल है जबस कलाम मेरा ए दिल!
सुन सुनके उससे सुख़नवराने-कामिल
आसान कहने की करते हैं फ़रमाइश
गोयम मुश्किल वगरना गोयम मुश्किल
6.
कहते हैं कि अब वो मर्दम-आज़ार नहीं
उशशाक़ की पुरसिश से उसे आर नहीं
जो हाथ कि ज़ुल्म से उठाया होगा
क्यूँकर मानूँ कि उसमें तलवार नहीं
7.
हम गरचे बने सलाम करने वाले
कहते हैं दिरंग काम करने वाले
कहते हैं कहें ख़ुदा से अल्लाह अल्लाह
वो आप हैं सुब्ह शाम करने वाले
8.
सामने-ख़ुरो-ख्व़ाब कहाँ से लाऊँ
आराम के असबाब कहाँ से लाऊँ
रोज़ा मेरा ईमान है “ग़ालिब” लेकिन
ख़सख़ाना-ओ-बर्फ़आब कहाँ से लाऊँ
9.
दुःख जी के पसंद हो गया है ‘ग़ालिब’,
दिल रुककर बन्द हो गया है ‘ग़ालिब’,
वल्लाह कि शब् को नींद आती ही नहीं,
सोना सौगंद हो गया है ‘ग़ालिब’
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