Hindi Kavita
हिंदी कविता
Apne Saamne - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - उस टीले तक
उस टीले तक
जेबों में कुछ पुराने सिक्के,
हाथों में लगाम,
लंगड़ाते टट्टूयों पर सवार,
ऊबड़ खाबड़ सफ़र तय करते
हमने जिस टीले पर पहुँचकर पड़ाव किया
कहते हैं वहीं से सिकन्दर ने अपने घर वापस
लौटने की कोशिश की थी!
'घर'-मैंने इस शब्द की व्याकुल गूँज को
अक्सर ऐसी जगहों पर सुना है
जो कभी किसी विजेता के जीतों की अंतिम हद रही है।
लेकिन हम वहाँ विल्कुल उल्टे रास्ते से पहुँचे थे
और बिल्कुल अकस्मात्। यानी कोई इरादा न था
कि हम वहीं खड़े होकर, भूखे प्यासे बच्चों से घिरे,
उस उजाड़ जगह का मुआयना करते हुए
सिकन्दर के भूत वा भविष्य के बारे में अनुमान लगाते।
"नहीं, हम अब और आगे नहीं जा सकते,
हम बेहद थक चुके हैं, हम घर पहुँचना चाहते हैं"
उन सबने मिलकर
लगभग बग़ावत कर दी थी। अगर मैं सिकन्दर होता
तो मुमकिन है उस रात उन तेरहों का खून कर देता
जो पीछे लौटनेवालों के अगुवा थे। हमने
वह सीमा क़रीब क़रीब ढूंढ़ ही निकाली थी
जहाँ तक सिकन्दर पहुँचा था।
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