Hindi Kavita
हिंदी कविता
Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - उपसंहार
उपसंहार
तुम्हारी मान्यताएँ वह परिधि है
जिससे केवल शून्य बनते हैं,
तुम्हारा व्यक्तित्व वह इकाई है
जिससे केवल संख्याएँ बनती हैं।
मैं समूह से विस्छिन्न हूँ
क्योंकि कुछ भिन्न हूँ।
मैं जानता हूँ कभी न कभी
तुम्हारे स्वत्व की कोई अदम्य जिज्ञासा
या उसकी व्याकुल पुनरावृत्ति-मुझे खोजेगी,
लेकिन तब जब कि यह समूची दुनिया
मेरे हाथों से गिर कर टूट चुकी होगी
और मैं अस्तित्व के किसी विघटित प्रतीक में ही
पाया जा सकूँगा।
हमारी पछताती आत्माएँ अनन्त काल तक भटकेंगी
उस अर्थ के लिए
जो हम आज एक दूसरे को दे सकते हैं।
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