कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - टूटे हुए ख़ंजर की मूठ

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - टूटे हुए ख़ंजर की मूठ

टूटे हुए ख़ंजर की मूठ
किसी टूटे हुए ख़ंजर की मूठ हाथों में लिए
सोच रहा हूँ-
ख़ंजरों के बारे में
उन्हें चलानेवाले हाथों के बारे में
क़ातिलों और हमलों के बारे में
हज़ारों वर्षों के बारे में

और एक पल में अचानक
किसी अन्धी गली में खो जानेवाली
चीख़ के बारे में...
 

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