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हिंदी कविता
Chakravyuh : Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - स्वयं की अभिव्यक्तियाँ
स्वयं की अभिव्यक्तियाँ
क्या यही हूँ मैं!
अँधेरे में किसी संकेत को पहिचानता-सा?
चेतना के पूर्व सम्बन्धित किसी उद्देश्य को
भावी किसी सम्भावना से बाँधता-सा?
स्याह अम्बर में छिपी आलोक की गंगा कहीं
हर रात तारों से टपकती अनवरत,
नींद के परिवेश में भी सजग रहती
चेतना की, स्वप्न बन, कोई परत;
कौन तमग्राही कठिन बेहोशियों में
भोर का सन्देश भर जाता?
कौन मिट्टी का अंधेरा गुदगुदा कर
फूल के दीपक जलाता?
क्या यही हूँ मैं!
उजागर इस क्षितिज से उस क्षितिज तक जागता-सा?
एक क्षण की सिद्ध प्रामाणिक, परिष्कृत चेतना से
युग युगों को मांजता-सा?
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