सवेरा
करोड़ों आँख वाली रात पर,
दानव सरीखी रात पर,
ताज़ा सवेरा :
पूर्व में आलोक...
पहला पाँव...
थोड़ा कांप कर :
रात चौंकी इस तरह
ज्यों छिप रही हो
कहीं कोई पुण्य-नाशक पाप कर :
ज्योति के पंजे ठहरते रात पर पैने,
घेरे कर तम को उतरते आग के डैने,
चमकता सोनपंखी गरुड़ काले साँप पर :
वन्दना के स्वर उभरते,
हर्ष से पक्षी चहकते,
एक बावन किरन बढ़ कर छा गई आक्षितिज,
तीनों लोक पग से नाप कर :
कई यादों सताई बात पर,
अब तक अखरती बात पर,
ताज़ा सवेरा।
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Kunwar Narayan) #icon=(link) #color=(#2339bd)