कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - सतहें

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: अपने सामने - सतहें

सतहें
सतहें इतनी सतही नहीं होती
न वजहें इतनी वजही
न स्पष्ट इतना स्पष्ट ही
कि सतह को मान लिया जाए काग़ज़
और हाथ को कहा जाए हाथ ही।

जितनी जगह में दिखता है एक हाथ
उसका क्या रिश्ता है उस बाक़ी जगह से
जिसमें कुछ नहीं दिखता है?
क्या वह हाथ
जो लिख रहा
उतना ही है
जितना दिख रहा?
या उसके पीछे एक और हाथ भी है
उसे लिखने के लिए बाध्य करता हुआ?
 

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