कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - रिक्शा पर

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - रिक्शा पर

रिक्शा पर
रिक्शा पर ढोंढू भाई :
रिक्शा औ रिक्शावाले के कुल जोड़ वज़न के ढाई!

आगे थी कठिन चढ़ाई :
देखा रिक्शावाले ने तो ताक़त भर एड़ लगाई :

लेकिन ग़रीब की हिम्मत
हद भर मोटे के आगे कुछ ज़्यादा काम न आई।

लद कर वो बैठे रहे वहीं,
कुछ करें मदद बेचारे की, यह समझ न उनको आई :

रिक्शावाले का मतलब
रिक्शा का हिसा नहीं, आदमी होता, ढोंढू भाई

ये जुल्म देख कर रिक्शा
दो पहियों पर हो गई खड़ी जैसे घोड़ी बौराई!

फिर सरपट पीछे भागी
हो एक तरफ़ से लोटपोट जा पुलिया से टकराई।

यह देख भीड़ घबराई
समझी कोई आफ़त सिर पर उसके ही ढहने आई।

पटकी खा ढोंढू भाई
रिक्शा के नीचे चित्‌ पड़े-रिक्शा मन मन मुस्काई!

बेहाल देख कर उनको
पहले तो सभी सन्‍न फिर असली बात समझ में आई-

रिक्शावाले को ज़्यादा चोट न आई,
दुबला-पतला था झाड़पोंछ उठ बैठा :
पर ऐम्बुलेन्स में भरे गए,
बेचारे ढोंढू भाई।
 

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