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हिंदी कविता
Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - प्यार के सौजन्य से
प्यार के सौजन्य से
वृक्ष से लिपटी हुई क्वाँरी लताएँ,
दो नयन
मानों अपरिमित प्यास के सन्दर्भ में काली घटाएँ,
उर्वरा धरती समर्पित,
सृष्टि का आभास वर्जित गर्भ में,
तुष्टि का अपयश
कलकित मालती की दुधमुँही कलियाँ?
हज़ारों साल बूढ़े मन्दिरों
तुम चुप रहो,
आत्मीय है वह नाम जो अज्ञात-
उसको पूछने से पाप लगता,
फूल हैं उसकी खुशी की देन
उनको पोछने से दाग़ लगता!
पतित-पावन वत्सला धरती
तुम्हारे पुत्र हैं जो जन्म ले लें...
साक्षी हैं
फूलदानों में सिसकते चन्द धुँधले फूल,
कुंठित सभ्यता के किसी तोषक अर्थ में
वनजात है सौन्दर्य की भाषा!
उसे स्वच्छन्द रहने दो।
बड़े संयोग से ही यह कहानी
सुनी तारों की ज़बानी
प्यार के सौजन्य से।
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