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Chakravyuh : Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - कुछ ऐसे भी यह दुनियां जानी जाती है
कुछ ऐसे भी यह दुनियां जानी जाती है
पागल-से, लुटे लुटे,
जीवन से छुटे छुटे,
ऊपर से सटे सटे,
अन्दर से हटे हटे,
कुछ ऐसे भी यह दुनियाँ जानी जाती है :
अपनी ही रची सृष्टि,
अपनी ही ब्रह्म-दृष्टि,
ऊपर से रचे रचे,
अन्दर से बचे बचे,
कुछ ऐसे भी दुनियाँ पहिचानी जाती है :
स्वयं बिना नपे तुले,
कण कण से मिले जुले,
ऊपर से ठगे ठगे,
अन्दर से जगे जगे,
कुछ ऐसे भी दुनियाँ अनुमानी जाती है।
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