Hindi Kavita
हिंदी कविता
Apne Saamne - Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - हँसी
हँसी
धीरे धीरे टूटता जाता
मेरी ही हँसी से मेरा हर नाता
अकसर वह सही जगहों पर नहीं आती
अकसर वह ग़लत जगहों पर आ जाती
मानो हँसी मेरी हँसी नहीं अपनी मर्ज़ी हो
चेहरे पर अपने ढंग से चढ़ा हुआ एक रंग
जो किसी ख़ुशी का द्योतक न होकर
एक विदूषक की भूमिका हो किसी प्रहसन में
कभी कभी एक अधूरी हँसी
या बनावटी हँसी
या विक्षिप्त हँसी
विकृत कर जाती है
चेहरे की दरकती हुई जटिल नक़्क़ाशी को...
सिर्फ आँखें हँसतीं
या सिर्फ होंठ
बाक़ी चेहरा किसी अन्य तल के प्रशान्त में
अधडूबी चट्टान-सा झलकता जिसे
हज़ारों वर्षों में लहरों और तुफ़ानों ने
तराशा कर एक मनुष्य-चेहरे का आकार दिया हो।
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