Hindi Kavita
हिंदी कविता
Chakravyuh : Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - चिटके स्वप्न
द्वितीय खंड : चिटके स्वप्न
चिटके स्वप्न
एक ही अनुरक्ति तक संसार जीता है :
कह समर्पण है समझ का ज़िन्दगी को
जो किसी विश्वास तक
किसी गन्तव्य तक
अस्तित्व को थकने नहीं देता...
वही है अन्त जब विश्वास मर जाता,
नहीं जब घोर माया
घाव मन के मूँद पाती है।
संगमरमर के गड़े स्तम्भ
जो देते किसी नभ को सहारा
ढह गए...
परछाइयाँ झरती रही जिद्दी पनपती घास पर
जो सदा बढ़कर छेंक लेती है
गिरे मीनार, क़ब्रिस्तान, खंडहर आदि...
जिसकी लहलहाती बाढ़ में
ऐश्वर्य कितने बह गए।
फिर भला कैसे न मानूँ वह वनस्पति ही अमर है
जो सदा बसती रही पिछली दरारों में समय की,
और जिसका दीर्घ आगत
पूर्ण रक्षित है हमारे गगन-चुम्बी महल सपनों में...
...और हम इनसान हैं वह
जिसे प्रतिपल एक दुनियाँ चाहिए।
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