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हिंदी कविता
Chakravyuh : Kunwar Narayan
कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - अटूट क्रम
अटूट क्रम
क्या ज़रूरी है कि यह मालूम ही हो लक्ष्य क्या है?
अनवरत संघर्षरत इस ज़िन्दगी का पक्ष क्या है?
क्या बुरा है मान लूँ यदि
चाल का सम्पूर्ण आकर्षण अनिश्चित मार्ग
जिसका अन्त है शायद
कहीं भी,
या कहीं भी नहीं।
दृष्टि में आलोक इंगित, एक तारा,
ग़ैर राहों में भटकता एक बंजारा,
समझू लूँ शान से
हर क्षण हमारा घर
कहीं भी,
जा कहीं भी नहीं।
क्या बुरा है यदि किसी क्षण से अचानक
प्रस्फुटित हो एक प्रगल्भ बहार-सा मूर्छित वनों में
पुनः अपने बीज के भक्तिव्य ही तक लौट आऊँ...
और अगला क़दम हो मेरा उठाया क्रम
कहीं भी,
या कहीं भी नहीं।
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