कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - अलग अलग खातों में

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Apne Saamne - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: कोई दूसरा नहीं - अलग अलग खातों में

अलग अलग खातों में
किसी ने कहा-'"रुको,"
तो मैंने रुक सकने की संभावना को सोचा।
मैं मजबूर था।
कुछ भी रुका नहीं मेरे रुकने से।

'चलो,' किसी ने कहा।
मैंने चलना चाहा तो लगा
कुछ भी तैयार नहीं चलने को मेरे साथ।

शायद उड़ना चाहिए-मैंने सोचा।
पंख फैलाये तो हर तरफ़।
न जाने कैसे कैसे
हौसलों के परखचे
उड़ते नज़र आये।

किसी ने कहा-"लड़ो,
जिन्दगी हक़ की लड़ाई है।"
हथियार उठाया तो देखा
मेरे खिलाफ़ पहला आदमी
मेरा भाई है।

गहराइयों में उतरा-
एक मछली दिखी। उससे पूछा-
"मछली मछली कितना पानी?"
वह इतरा कर बोली-"मुझे पकड़ो,
पकड़ सको तो वही थाह,
नहीं तो अथाह!"

इसी तरह साल दर साल
अलग अलग खातों में
दर्ज होते रहे मेरे हिसाब,
और एक दिन जब
कुल जमा पूंजी में से
घटा कर देखा पिछला सब रहा सहा

तो ढूँढ़े नहीं मिल रहा था
वह एक ख़्वाब जो लगा था
जिन्दगी से भी बड़ा...
 

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