ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम - अख़्तर अंसारी
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
बुल-हवस खाया करें इशरत-ए-फ़ानी की क़सम
इक ग़म-अंगेज़ हक़ीक़त है हमारी हस्ती
क़िस्सा-ख़्वाँ तेरी ग़म-अंगेज़ कहानी की क़सम
दिल की गहराइयों में आग दबी रखता हूँ
चश्म-ए-गिर्यां से बरसते हुए पानी की क़सम
जब से आई है ख़ुदा रक्खे जवानी अख़्तर
हम हर इक बात पर खाते हैं जावानी की क़सम
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Akhtar Ansari) #icon=(link) #color=(#2339bd)