दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है - अख़्तर अंसारी
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
वो आग बुझ गई लेकिन गुदाज़ बाक़ी है
नियाज़-केश भी मेरी तरह न हो कोई
उमीद मर चुकी ज़ौक-ए-नियाज़ बाक़ी है
वो इब्तिदा है मोहब्बत की लज्ज़तें वल्लाह
के अब भी रूह में इक एहतराज़ बाक़ी है
न साज़-ए-दिल है अब अख़्तर न हुस्न की मिज़राब
मगर वो फ़ितरत-ए-नग़मा-नवाज़ बाक़ी है
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Akhtar Ansari) #icon=(link) #color=(#2339bd)