कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - आह्वान

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Parivesh : Hum-Tum - Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: परिवेश : हम-तुम - आह्वान

प्यार के सौजन्य से
आह्वान
मानसर सनीर नयन,
रूपों के नील-कमल :
दर्द सही बार-बार,
कर जाओ फिर पागल।

सूनी मत होने दो
लहराती क्षितिज-कोर,
दूर हटो नीरव नभ,
सलिल ज्वार करो शोर :

बरसो हे जलद दिनों
इसी पार धरती पर,
पारदर्शी असीम
बूँदों से धुँधला कर :

हिलने दो आँधी में
यह अटूट बियावान,
टूट पड़े खंड-खंड
चिल्लाकर आसमान :

जीवन की नस-नस में
बिजली-सी कड़क जाए,
एक बार क्षितिजों तक
दृश्य-दृश्य तड़प जाए।
 

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