कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - उत्सर्ग

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Chakravyuh : Kunwar Narayan

कुँवर नारायण की कविता संग्रह: चक्रव्यूह - उत्सर्ग

उत्सर्ग
हैं मुझे स्वीकार
मेरे वन, अकेलेपन, परिस्थिति के सभी कांटे :

ये दधीची हड्डियां
हर दाह में तप लें,
न जाने कौन दैवी आसुरी संघर्ष बाक़ी हों अभी,
जिसमें तपाई हड्डियां मेरी
यशस्वी हों,
न जाने किस घड़ी के देन से मेरी
करोड़ों त्याग के आदर्श
विजयी हों :

जिसे मैं आज सह लूँ
कल वही देवत्व हो जाए,
न जाने कौन-सा उत्सर्ग
बढ़ अमरत्व हो जाए।
 

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