अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू - अख़्तर अंसारी
अब वो सीना है मज़ार-ए-आरज़ू
था जो इक दिन शोला-ज़ार-ए-आरज़ू.
अब तक आँखों से टपकता है लहू
बुझ गया था दिल में ख़ार-ए-आरज़ू.
रंग ओ बू में डूबे रहते थे हवास
हाए क्या शय थी बहार-ए-आरज़ू.
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