मेरे बच्चों - सुव्रत शुक्ल | Mere Bacchon - Suvrat Shukla

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"मेरे बच्चों "

किस्मत से ही मिला हुआ, मेरे बच्चों! प्यार - दुलार का।
लगता है ये कोई पुराना रिश्ता हो परिवार का। 
अपना क्या रिश्ता है बच्चों, क्यों यादों में तुम आते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन, जब भी तुम मुस्काते हो।।

सुबह सुबह आंखो में काजल, और टिफिन रख हाथों में,
कांधे पर बस्ता रख करते उछल कूद फिर बातों में।
थल दी गुड मॉर्निंग कह कर दांतों को जब दिखलाते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।।

फिर प्रांगण में हेतु प्रार्थना, को सबका यूं आ जाना।
ठीक उसी क्षण प्रिंसिपल सर काअच्छी बातें सिखलाना।
कक्षा में जाने को फिर हुड़दंगे खूब मचाते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।।

हुई दुपहरी में छुट्टी फिर, सबके खाना खाने की।
होड़ मची रहती टोंटी पर, सबसे पहले जाने की।
टीचर आते देख दोस्तों के पीछे छिप जाते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।।

कभी पढ़ाते हुए हमारे, पीछे बदमाशी करना।
कभी लड़ाई, कभी शरारत, और पढ़ाई भी करना।
पकड़े जाने पर बच्चों, तरकीबें खूब लगाते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।।

छुट्टी होने से पहले ही अपने बस्ते भर लेना।
टीचर के पूछे जाने पर नए बहाने दे देना।
बात घुमाना बात बनाना सीख कहां से पाते हो?
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।

वो कुछ पल का साथ तुम्हारा, पढ़ने और पढ़ाने का।
छुट्टी में फिर घर जाने का, फिर कल वापस आने का।
ये कुछ पल की तन्हाई जो, इसे छोड़ क्यों जाते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।

खेल, खेल में पढ़ लेना मै तुमको भले सिखाता हूं।
जीवन को आसान भले ही, कितना मै बतलाता हूं।
पर सच है यह बड़ी रात है, काली, घनी गुफाओं सी।
जहां आंधियां संघर्षों की चलती सदा सदाओं सी।
बच्चों मेरे योग्य बनो, दुनिया में तब रह पाओगे।
वरना जो खो गए भीड़ में कभी निकल ना पाओगे।
आज खेलते बच्चों में, अपना बचपन मैं पाता हूं।
खोया हुआ बचपना अपना तुम सब में जी पाता हूं।
इसीलिए अपने गतिविधि से मन को सदा लुभाते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।।

प्यारे बच्चों यह जीवन, उपवन है सदा बहारों का।
मैं बूढ़ा बरगद, बच्चों तुम खिलते फूल गुलाबों का।
तुम महको, चमको चन्दन सा, तुम आभा हो आज की।
अपना क्या हम बह जायेंगे,धारा में तब काल की।
याद आएंगे बीते वे पल, देख हमें इठलाते हो ।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।
सच कहता हूं झूम उठे मन जब भी तुम मुस्काते हो।
हां बतलाओ, मेरे बच्चों क्यों यादों में आते हो।।

                                                         - सुव्रत शुक्ल


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