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हिंदी कविता
रुत - राहत इन्दौरी
क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में - राहत इन्दौरी
क्या तूने नहीं देखा, दरिया की रवानी में,
बहते हुए पानी में, तेवर भी तो उसका है,
तू नूह का बेटा है, कुछ बस में नहीं तेरे,
कश्ती भी तो उसकी है, लंगर भी तो उसका है...
सूरज के निकलने से, तारों के बिखरने तक,
मौजों के थपेड़ों से, तूफां के ठहरने तक,
गुंचों के महकने से, कलियों के चटखने तक,
क्या तूने नहीं देखा, पैक़र भी तो उसका है...
अज़मत से हक़ीक़त से, मुंह मोड़ना चाहा था,
कुछ हाथियों वालों ने घर तोड़ना चाहा था,
क्या तूने नहीं देखा ? कमज़ोर परिंदों ने,
किस तरह हिफाज़त की, वह घर भी तो उसका है...
क्या तूने नहीं देखा ? क्या देख लिया तूने ?
उसके ही इशारे पर, ये सारे तमाशे हैं,
वह धूप का मालिक है, वह छाँव का खालिक़ है,
आँखें भी तो उसकी हैं, मंज़र भी तो उसका है...
क्या तूने नहीं देखा? वह खाक़ के ज़र्रों से,
सूरज भी बनाता है, तारे भी बनाता है,
मैं क्या हूं, मेरा क्या है, मिट्टी ही समझ मुझको,
पत्थर ही सही लेकिन, पत्थर भी तो उसका है...
मेरे पयम्बर का नाम है जो मेरी ज़ुबाँ पे चमक रहा है - राहत इन्दौरी
मेरे पयम्बर का नाम है जो मेरी ज़ुबाँ पे चमक रहा है
गले से किरणें निकल रही हैं, लबों से ज़मज़म छलक रहा है
मैं रात के आखरी पहर में जब आपकी नात लिख रहा था
लगा के अल्फाज़ जी उठे हैं लगा के काग़ज़ धड़क रहा है
सब अपनी अपनी ज़ुबाँ में अपने रसूल का ज़िक्र कर रहे हैं
फ़लक पे तारे चमक रहे हैं, शजर पे पत्ता खड़क रहा है
यहाँ अली भी हैं, फातमा भी, हसन भी हैं और हुसैन भी हैं,
तमाम मगरिब, तमाम मशरिक, नबी का गुलशन महक रहा है
ज़मीन महरूम ही रही है, हमेशा पा'बोसिए नबी से,
जहाँ कदम आपके पड़े हैं, वहाँ वहाँ तो फ़लक रहा है
मेरे नबी की दुआएँ हैं ये, मेरे ख़ुदा की अताएँ हैं ये,
कि ख़ुश्क मिट्टी का ठिकरा भी, हयात बन कर खनक रहा है
अगर नसीब करीब ए दर ए नबी हो जाये - राहत इन्दौरी
अगर नसीब करीब ए दर ए नबी हो जाये
मेरी हयात मेरी उम्र से बड़ी हो जाये
गुज़रता कैसे है एक एक पल मदीने में
अगर सुनाने पे आऊँ तो एक सदी हो जाये
दर ए हबीब से हर बार वापसी के वक़्त
दुआ ये माँगी के एक और हाज़री हो जाये
अंधेरे पाँव ना फैला सकें ज़माने में
दरुद पढ़िए के हर सिम्त रोशनी हो जाये
कबूतरों के मैं दाने समेट लाया था
इसी बहाने सितारों से दोस्ती हो जाये
मैं मीम हे लिखूँ फिर मीम लिखूँ दाल लिखूँ
ख़ुदा करे के यूँ ही खत्म ज़िन्दगी हो जाये
जहाँ से गुज़रो धुआँ बिछा दो - राहत इन्दौरी
जहाँ से गुज़रो धुआँ बिछा दो, जहाँ भी पहुँचो धमाल कर दो,
तुम्हे सियासत ने हक दिया है, हरी ज़मीनों को लाल कर दो
मोहब्बतों का हूँ मैं सवाली, मुझे भी एक दिन निहाल कर दो,
नज़र मिलायो, नज़र मिला कर, फ़कीर को मालामाल कर दो
अपील भी तुम, दलील भी तुम, गवाह भी तुम, वकील भी तुम,
जिसे भी चाहो हराम लिख दो, जिसे भी चाहो हलाल कर दो
है सादगी में अगर ये आलम, कि जैसे बिजली चमक रही है,
जो बन संवर के सड़क पे निकलो, तो शहर भर में धमाल कर दो
तुम्ही सनम हो, तुम्ही ख़ुदा हो, वफ़ा भी तुम हो, तुम ही जफ़ा हो,
सितम करो तो मिसाल कर दो, करम करो तो कमाल कर दो
तुम्हें किसी की कहां है परवाह, तुम्हारे वादे का क्या भरोसा,
जो पल की कह दो तो कल बना दो, जो कल की कह दो तो साल कर दो
अभी लगेगी नई नई सी, ये इक फज़ा है जो सुरमई सी,
जो ज़ुल्फ़ चेहरे से तुम हटा लो, तो सारा मंज़र गुलाल कर दो
कई दिनों से अंधेरों का बोलबाला है - राहत इन्दौरी
कई दिनों से अंधेरों का बोलबाला है
चराग़ ले के पुकारो, कहां उजाला है
ख़याल में भी तेरा अक्स देखने के बाद,
जो शख़्स होश गँवा दे, वो होश वाला है
जवाब देने के अन्दाज़ भी निराले हैं,
सलाम करने का अन्दाज़ भी निराला है
सुनहरी धूप है सदका तेरे तबस्तुम का,
ये चाँदनी तेरी परछाई का उजाला है
मैं तुझ को कुफ़्र से तशबीह दूँ कि इमाँ से,
पता नहीं कि तू मस्जिद है या शिवाला है
मज़ाक उड़ाते हैं पानी के बुलबुले उसका,
जिस आदमी ने समन्दर निचोड़ डाला है
है तेरे पैरों की आहट ज़मीन की गर्दिश,
ये आसमाँ तेरी अँगड़ाई का हवाला है
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ में रहे - राहत इन्दौरी
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे...
साँसों की तरह साथ रहे सारी ज़िन्दगी,
तुम ख़्वाब से गये तो ख़यालात में रहे...
हर बूंद तीर बन के उतरती है रूह में,
तन्हा मेरी तरह कोई बरसात में रहे...
वो चाँद है तो होने का अपने सबूत दे,
मेहमान बन के छत पे मेरे साथ में रहे...
हर रंग हर मिजाज़ में पाया है आपको,
मौसम तमाम आपकी खिदमात में रहे...
शाखों से जो टूट जाएं वो पत्ते नहीं है हम,
आंधी से कोई कह दे कि औकात में रहे...
क्या ख़रीदोगे ये बाज़ार बहुत महँगा है - राहत इन्दौरी
क्या ख़रीदोगे ये बाज़ार बहुत महँगा है,
प्यार की ज़िद न करो प्यार बहुत महँगा है...
चाहने वालों की एक भीड़ लगी रहती है,
आजकल आपका दीदार बहुत महँगा है...
इश्क में वादा निभाना कोई आसान नहीं,
करके पछताओगे इकरार बहुत महँगा है...
आज तक तुमने खिलौने ही खरीदे होंगे,
दिल है ये दिल मेरे सरकार बहुत महँगा है...
दे के ताज और हुकूमत भी खरीदा न गया,
आज मालूम हुआ प्यार बहुत महँगा है...
हम सुकूँ ढूँढने आये थे दुकानों में मगर,
फिर कभी देखेंगे इस बार बहुत महँगा है...
मुश्किल से हाँथों में ख़ज़ाना पड़ता है - राहत इन्दौरी
मुश्किल से हाँथों में ख़ज़ाना पड़ता है,
पहले कुछ दिन आना जाना पड़ता है...
ख़ुश रहना आसान नहीं है दुनिया में,
दुश्मन से भी हाथ मिलाना पड़ता है...
इश्क में सचमुच का नहीं तो वादों का,
ताजमहल सबको बनवाना पड़ता है...
यूँ ही नहीं रहता है उजाला बस्ती में,
चाँद बुझे तो घर भी जलाना पड़ता है...
तुम क्या जानो तन्हा कैसे जीते हैं,
दीवारों से सर टकराना पड़ता है...
तू भी फलों का दावेदार निकल आया,
बेटा पहले पेड़ लगाना पड़ता है...
मुश्किल फ़न है ग़ज़लों की रोटी खाना,
बहरों को भी शेर सुनाना पड़ता है...
प्यार का रिश्ता कितना गहरा लगता है - राहत इन्दौरी
प्यार का रिश्ता कितना गहरा लगता है,
हर चेहरा अब तेरा चेहरा लगता है...
तुमने हाथ रखा था मेरी आँखों पर,
उस दिन से हर ख़्वाब सुनहरा लगता है...
उस तक आसानी से पहुँचना मुश्किल है,
चाँद के दर पर रात का पहरा लगता है...
जबसे तुम परदेस गये हो बस्ती में,
चारों तरफ़ सेहरा ही सेहरा लगता है...
कच्चे घड़े के रिश्ते अब तो ख़त्म हुए,
दरिया भी कुछ ठहरा ठहरा लगता है...
मज़बूरी रोने भी नहीं देती मुझको,
दरियाओं पे आज भी पहरा लगता है...
ज़ुल्फ़ बन कर बिखर गया मौसम - राहत इन्दौरी
ज़ुल्फ़ बन कर बिखर गया मौसम,
धूप को छांव कर गया मौसम..
मैंने पूछी थी ख़ैरियत तेरी,
मुस्करा कर गुज़र गया मौसम..
फिर वो चेहरा नज़र नहीं आया,
फिर नज़र से उतर गया मौसम..
तितलियाँ बन के उड़ गयीं रातें,
नींद को ख़्वाब कर गया मौसम..
फूल ही फूल थे निगाहों में,
दाग ही दाग भर गया मौसम...
तुम ना थे तो मुझे पता न चला,
किधर आया किधर गया मौसम...
आप के आने की ख़बर सुन कर,
जाते जाते ठहर गया मौसम...
अभी दिल में दर्द कम है, अभी आँख तर नहीं है - राहत इन्दौरी
अभी दिल में दर्द कम है, अभी आँख तर नहीं है,
तेरे गम से मेरा रिश्ता अभी मोतबर नहीं है...
हैं ज़माने भर में चर्चे मेरी सर बुलन्दियों के,
ये इनायतें हैं तेरी ये मेरा हुनर नहीं है...
तुझे लिख के जो ना चूमे, तुझे देख कर ना झूमे,
तो ज़ुबाँ, ज़ुबाँ नहीं है, वो नज़र, नज़र नहीं है...
ये ज़माना लाख गुज़रे नये हादसों से लेकिन,
मैं तेरी पनाह में हूँ, मुझे कोई डर नहीं है...
ये जो आख़िरी सफ़र है यही हासिल ए सफ़र है,
मगर इस सफ़र में अपना कोई हमसफ़र नहीं है...
ज़िन्दगी नाम को हमारी है - राहत इन्दौरी
ज़िन्दगी नाम को हमारी है,
आखरी सांस भी तुम्हारी है...
तेरी चाहत कहाँ पे ले आयी,
तुमसे मिल कर भी बेकरारी है...
मुझसे पूछो चमक सितारों की,
मैंने रो रो के शब गुज़ारी है...
आपके हाथ में लकीरें हैं,
वरना तकदीर तो हमारी है...
एक तस्वीर में हैं दो शक्लें,
या हमारी है, या तुम्हारी है...
दिल मेरा तोड़ते हो, तो तोड़ो,
चीज़ मेरी नहीं तुम्हारी है...
प्यार में वो घड़ी अब ना आये - राहत इन्दौरी
प्यार में वो घड़ी अब ना आये, जब सहारों का दिल टूट जाये,
एक कच्चे घड़े को डुबो कर, दो किनारों का दिल टूट जाये...
बेवफ़ाई के इन पत्थरों से, बेक़रारों का दिल टूट जाये...
आप शायद यही चाहते हैं, के हज़ारों का दिल टूट जाये...
आसुओं ने कहा बहते बहते, आ भी जायो उम्मीदों के रहते,
इससे पहले के गम सहते सहते, गम के मारों का दिल टूट जाये...
तुमने पायी है कांटों की फितरत, सौंप दो तुम ख़िज़ां को हुकूमत,
चाहे फूलों पे गुज़रे क़यामत, या बहारों का दिल टूट जाये...
जंग है रात और रोशनी की, नब्ज़ ख़ामोश है चाँदनी की,
चाँद से खैरियत पूछ लेना, जब सितारों का दिल टूट जाये...
कम नहीं हैं मुझे हमदमों से, मेरा याराना है इन गमों से,
मैं ख़ुशी को अगर मुँह लगा लूँ, मेरे यारों का दिल टूट जाये...
ना वो रास्ते, ना वो हमसफ़र - राहत इन्दौरी
ना वो रास्ते, ना वो हमसफ़र, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे,
वो जो शहर था, है वही मगर, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे...
जो हमारे दिल पे गुज़र गयी, जो तुम्हारे दिल पे गुज़र गयी,
ना हमें पता ना तुम्हें ख़बर, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे...
हमें फ़ख्र अपने सुलूक पर, तुम्हें नाज़ अपने खुलूस पर,
मगर अपने अपने मुकाम पर, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे...
कभी हम तुम्हारे करीब थे, कभी तुम हमारे हबीब थे,
मगर अब नहीं कोई मोतबर, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे...
कभी रात मन्नतें माँगना, कभी सुबह देर से जागना,
ना वो शब रही ना रही सहर, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे...
जो तआलुक्कात थे क्या हुए, जो तसव्वुरात थे क्या हुए,
कि वफ़ा ए इश्क़ के मोड़ पर, ना वो हम रहे, ना वो तुम रहे...
आप हमसे बेखबर ऐसे ना थे - राहत इन्दौरी
आप हमसे बेखबर ऐसे ना थे,
दिल के दुश्मन थे मगर ऐसे ना थे...
तुम ना थे तो ज़िन्दगी बेरंग थी,
रात दिन शाम ओ सहर ऐसे ना थे...
मंज़िलें दुश्वार थीं कल भी मगर,
रास्ते और हमसफ़र ऐसे ना थे...
अब तो हर खिड़की में रोशन चाँद है,
पहले इस बस्ती में घर ऐसे ना थे...
तेरे दर से उठ के ये हालत हुई,
कल तलक हम दर बदर ऐसे ना थे...
टूटा हुआ दिल तेरे हवाले मेरे अल्लाह - राहत इन्दौरी
टूटा हुआ दिल तेरे हवाले मेरे अल्लाह,
इस घर को तबाही से बचा ले मेरे अल्लाह...
दुनिया के रिवाजों को भी तोड़ दूं लेकिन,
एक शख़्स मुझे अपना बना ले मेरे अल्लाह...
वो साथ वो दिन रात वो नगमात वो लम्हे,
लौटा दे मुझे मेरे उजाले मेरे अल्लाह...
मैं जिसके लिए सारे ज़माने से खफा हूँ,
वो ख़ुद ही मुझे आ के मना ले मेरे अल्लाह...
उलझन को बढ़ाते हैं ये उलझे हुए रस्ते,
अब तेरे सिवा कौन संभाले मेरे अल्लाह...
ये रात ये तूफ़ान ये टूटी हुई कश्ती,
मैं डूबने वाला हूँ बचा ले मेरे अल्लाह...
मैं किसको सदा दूँ जो मेरे ख़्वाब में आकर,
कांटे मेरी पलकों से निकाले मेरे अल्लाह...
आग में फूलने फलने का हुनर जानते हैं - राहत इन्दौरी
आग में फूलने फलने का हुनर जानते हैं,
ना बुझा हमको के जलने का हुनर जानते हैं...
हर नये रंग में ढलने का हुनर जानते हैं,
लोग मौसम में बदलने का हुनर जानते हैं...
आपने सिर्फ़ गिराने की अदा सीखी है,
और हम गिर के संभलने का हुनर जानते हैं...
क्या समेटेगा हमेँ वक़्त का गहरा दरिया,
हम किनारों से उबलने का हुनर जानते हैं...
शौक से आयें मेरे साथ मेरे साथ चलें,
आप अगर आग ये चलने का हुनर जानते हैं...
चाल चलने में महारत है यहाँ लोगों को,
और हम बच के निकलने का हुनर जानते हैं...
तोड़ दे ये ख़यालों की बैसाखियाँ - राहत इन्दौरी
तोड़ दे ये ख़यालों की बैसाखियाँ और पैरों पे चलने का फन सीख ले,
रुख हवा का बदलने की फिर सोचना, पहले कपड़े बदलने का फन सीख ले...
लोग मौसम की सूरत बदलने लगे, फूल भी अपनी रंगत बदलने लगे,
आईने अपनी फितरत बदलने लगे, तू भी चेहरा बदलने का फन सीख ले...
कोई रस्ता ना देगा तुझे भीड़ में, रेंगते रेंगते उम्र कट जाएगी,
शौक से तू मेरी पीठ पे वार कर, मुझसे आगे निकलने का फन सीख ले...
मुझ पे तेरी नज़र, तुझ पे मेरी नज़र, ये सफ़र में ज़रूरी है ए हमसफ़र,
मैं संभल कर बहकने का गुर सीख लूं, तू बहक कर संभलने का फन सीख ले...
ज़िन्दगी मौत है, मौत है ज़िन्दगी, रोशनी का तसव्वुर भी है रोशनी,
तू है सूरज तो ढलने पे ईमान रख, और दिया है तो जलने का फन सीख ले...
छानते हैं जो गहराई वो हम नहीं, है समन्दर से रिश्ता यही कम नहीं,
ये भी तहज़ीब है इस बड़े शहर की, साहिलों पे टहलने का फन सीख ले...
हैं धुआँ जिस तरह बर्फ़ के दरमियाँ, छांव में ला के रख धूप की गरमियां,
आग से दोस्ती का अगर शौक है, मोम बन कर पिघलने का फन सीख ले...
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं - राहत इन्दौरी
कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं,
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं
शब गुज़ार आया हूँ मस्जिद में के मैखाने में
मुझसे मुछो न सवालात मुझे होश नहीं...
मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं...
आँसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैंने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं...
जाने क्या टूटा है पैमाना कि दिल है मेरा
बिखरे-बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं...
मैंने बेहोशी के आलम में बका है क्या क्या
दिल पे लेना न कोई बात मुझे होश नहीं...
जो किताबों ने लिखा, उससे जुदा लिखना था - राहत इन्दौरी
जो किताबों ने लिखा, उससे जुदा लिखना था,
लिख के शर्मिन्दा हूँ तुझको के सिवा लिखना था...
चाँद लिक्खा कभी सूरज कभी मौसम लिक्खा,
बात इतनी थी मुझे नाम तेरा लिखना था...
तुझसे मिलने की तमन्ना तुझे छूने की हवस,
यानि बहते हुए पानी पे हवा लिखना था...
मैंने काग़ज़ पे सदा दिल की बिखर जाने दी,
मुझको ये भी नहीं मालूम के क्या लिखना था...
मर्तबा दिल का ग़ज़ल मेरी कसीदा उसका,
कुछ न कुछ आज मुझे मेरे ख़ुदा लिखना था...
इनके सीनों में उजाले ना उतारे होते,
जिन चरागों के मुकद्दर में हवा लिखना था...
पानियों और ज़मीनों को करम लिक्खा है,
आसमानों को मुझे तेरी क़बा लिखना था...
तेरे औसाफ रकम हों ये कहां मेरी बिसात,
सिर्फ़ एक रस्म अदा करनी थी क्या लिखना था...
फिर वही मीर से अब तक की सदायों का तिलिस्म,
हेफ़ राहत के तुझे कुछ तो नया लिखना था...
दिल बुरी तरह से धड़कता रहा - राहत इन्दौरी
दिल बुरी तरह से धड़कता रहा,
बो बराबर मुझे ही तकता रहा...
रोशनी सारी रात कम ना हुई,
तारा पलकों पे एक चमकता रहा...
छू गया जब कभी खयाल तेरा,
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा...
कल तेरा ज़िक्र छिड़ गया घर में,
और घर देर तक महकता रहा...
रात हम मैक़दे में जा निकले,
घर का घर शहर में भटकता रहा...
उसके दिल में तो कोई मैल ना था,
मैं खुदा जाने क्यूँ झिझकता रहा...
मुट्ठियाँ मेरी सख्त होती गयीं,
जितना दामन कोई झटकता रहा...
मीर को पढ़ते पढ़ते सोया था,
रात भर नींद में सिसकता रहा...
जिस्म में क़ैद हैं घरों की तरह - राहत इन्दौरी
जिस्म में क़ैद हैं घरों की तरह,
अपनी हस्ती है मकबरों की तरह
तू नहीं था तो मेरी सांसों ने,
जुल्म ढाये सितमगरों की तरह
अगले वक़्तों के हाफिज़े अक्सर,
मुझको लगते हैं नश्तरों की तरह
और दो चार दिन हयात के हैं,
वो भी कट जाएँगे सरों की तरह
कल कफ़स में ही थे तो अच्छे थे,
आज फिरते हैं बेघरों की तरह
अपने फैलाव पर उछलता है,
क़तरा क़तरा समन्दरों की तरह
बन के सय्याद वक़्त ने राहत,
नोच डाला मुझे परों की तरह
मुस्कुराहट ज़वाब में रखना - राहत इन्दौरी
मुस्कुराहट जवाब में रखना,
आँसुओं को नकाब में रखना
ज़िन्दगी सिर्फ़ एक तेरी ख़ातिर,
रूह कब तक अज़ाब में रखना
मैंने ये तय नहीं किया अब तक,
ज़िन्दगी किस हिसाब में रखना
ठोकरें, ज़ुल्मतें, सितम, आँसू,
सारी बातें हिसाब में रखना
जाम दुख का हो चाहे सुख का हो,
गर्क मुझको शराब में रखना
तुमको पहचानता नहीं कोई,
फिर भी चेहरा नकाब में रखना
वो सामने पहाड़ है हसरत निकाल ले - राहत इन्दौरी
वो सामने पहाड़ है हसरत निकाल ले
तेशा नहीं तो फूल का रेशा संभाल ले
फिर शौक से बढ़ाना इधर दोस्ती का हाथ
पहले तू मुझको अच्छी तरह देखभाल ले
ऐसे तो ख़त्म हो ना सकेगा मुकाबला
अब मशविरा यही है के सिक्का उछाल ले
ये लगज़िशें तो मेरी विरासत में आयी हैं
अब तेरा काम है के गिरूं तो संभाल ले
फिर रात ले के आयी है तनहायी का फुसूं
ताज़ा ग़ज़ल के वास्ते मिसरा निकाल ले
आँखों के लफ़्ज़, ज़ुल्फ का झरना, लबों के चाँद
सब फूल तोड़ तोड़ के ग़ज़लों में डाल ले
यारो मुआफ़ मीर का मैं मोतकिद नहीं
ऐसी भी क्या ग़ज़ल जो कलेजा निकाल ले
बेवफ़ा होगा, बावफ़ा होगा - राहत इन्दौरी
बेवफ़ा होगा, बावफ़ा होगा,
उससे मिल कर तो देख क्या होगा
बैर मत पालिए चरागों से
दिल अगर बुझ गया तो क्या होगा
सर झुका कर जो बात करता है
तुमसे वो आदमी बड़ा होगा
क़हक़हे जो लुटा रहा था कभी
वो कहीं छुप के रो रहा होगा
उससे मिलना कहाँ मुक़द्दर है
और जी भी लिए तो क्या होगा
राहत एक शब में हो गये हैं रईस
कुछ फ़क़ीरों से मिल गया होगा
रास्ता भूल गया क्या इधर आने वाला - राहत इन्दौरी
रास्ता भूल गया क्या इधर आने वाला
अब तो ये सुबह का तारा भी है जाने वाला
याद के फूल को पलकों पे सजा के रखना
ये मुसाफिर है बहोत दूर से आने वाला
आप उस शख़्स से वाकिफ तो हैं कम वाकिफ हैं
वो मसीहा है मगर ज़ख़्म लगाने वाला
अजनबी शहर से मायूस ना हो चल तो सही
मिल ही जाएगा कोई साथ निभाने वाला
जिस्म में सांस थी जब तक वो मुखालिफ़ ही रहा
मेरा दुश्मन था मगर साथ निभाने वाला
मशहूर थे जो लोग समन्दर के नाम से - राहत इन्दौरी
मशहूर थे जो लोग समन्दर के नाम से
आँखें मिला ना पाये मेरे खाली जाम से
ए दिल ये बारगाह मोहब्बत की है यहाँ
गुस्ताख़ियाँ भी हों तो बहुत एहतराम से
मुरझा चुके हैं अब मेरी आवाज़ के कंवल
मैंने सदाएँ दी हैं तुझे हर मुकाम से
कुछ कम नहीं हैं तेरे मोहल्ले की लड़कियाँ
आवाज़ दे रही हैं मुझे तेरे नाम से
याद आ रहे हैं मुझको निदा फाज़ली के गीत
मौसम ने दिल में आग लगा दी है शाम से
मेरी आँखों में कैद थी बारिश - राहत इन्दौरी
मेरी आँखों में क़ैद थी बारिश
तुम ना आये तो हो गयी बारिश
आसमानों में खो गया सूरज
नदियों में ठहर गयी बारिश
फूल पर, पत्तियों पे, पलकों पर
कितने मोती सजा गयी बारिश
गांव में इक मकान भी ना बचा
और सब देखती रही बारिश
तिशनगी ढूंढती है बरसों से
नहर झरना कुआँ नदी बारिश
बीते लम्हों की वो उमस थी के बस
तेरी याद आयी आ गयी बारिश
ठंडे सूरज की छाँव में बैठी
रात भर की थकी हुई बारिश
आपके आते ही मौसम को सदा दी जायेगी - राहत इन्दौरी
आपके आते ही मौसम को सदा दी जायेगी
टहनियों को सज्जा पत्रों की क़बा दी जायेगी
मुसकुराता जो मिला उसको सजा दी जायेगी
आँसुओं की इस कदर कीमत बढ़ा दी जायेगी
आप अपनी क़ब्र में दब जायेगी काग़ज़ की लाश
और ये दीवार लफ़्ज़ों की गिरा दी जायेगी
सज रहे हैं करवटों के फूल मेरी सेज पर
ये चिता भी सुबह से पहले बुझा दी जायेगी
अपनी आवाज़ें सलामत चाहते हो तो सुनो
कब तलक इन गूँगे बेहरों को सदा दी जायेगी
अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे - राहत इन्दौरी
अब ना मैं वो हूँ, ना बाकी है ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख़्म भी लग जायेंगे
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे
आप से रोज़ मुलाकात की उम्मीद नहीं
अब कहाँ शहर में रहते हैं ठिकाने मेरे
उम्र के राम ने साँसों का धनुष तोड़ दिया
मुझपे एहसान किया आज ख़ुदा ने मेरे
आज जब सो के उठा हूँ तो ये महसूस हुआ
सिसकियाँ भरता रहा कोई सिरहाने मेरे
(अहमद फराज़ के एक मिसरे से तसर्रुफ़ किया गया है)
तू शब्दों का दास रे जोगी - राहत इन्दौरी
तू शब्दों का दास रे जोगी
तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
इक दिन विष का प्याला पी जा
फिर न लगेगी प्यास रे जोगी
ये सांसों का बन्दी जीवन
किसको आया रास रे जोगी
विधवा हो गई सारी नगरी
कौन चला बनबास रे जोगी
पूर आई थी मन की नदिया
बह गए सब एहसास रे जोगी
इक पल के सुख की क्या क़ीमत
दुख हैं बारह मास रे जोगी
बस्ती पीछा कब छोड़ेगी
लाख धरे सन्यास रे जोगी
दूरियां पाँव की थकन जैसी - राहत इन्दौरी
दूरियां पाँव की थकन जैसी
और सियाह रात राहज़न जैसी
मेरे आँगन में आ के ठहरी थी
चाँदनी तेरे ही बदन जैसी
मुद्दतों से तलाश करता हूँ
एक ग़ज़ल तेरे बाँकपन जैसी
एक एक हर्फ़ में मिली मुझको
ख़ूबियां सब तेरे दहन जैसी
गम के सेहरा में भागते रहिए
ज़िन्दगी हो गयी हिरन जैसी
कल गुलाबों के साथ फिरती रही
सारी ख़ुशबू तेरे बदन जैसी
सोचता हूँ के इसपे नज़्म कहूँ
एक गुड़िया मेरी बहन जैसी
चन्द लोगों में आज भी राहत
बात है मौलवी मदन जैसी
जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है - राहत इन्दौरी
जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है
वो शख्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है
मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ
मेरी नज़र में वो पत्थर भी है खुदा भी है
सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी
हमारे सामने ख्वाबों का मसअला भी है
जवाब दे ना सका, और बन गया दुश्मन
सवाल था, के तेरे घर में आईना भी है
ज़रूर वो मेरे बारे में राय दे लेकिन
ये पूछ लेना कभी मुझसे वो मिला भी है
मिले जो वक़्त तो मिलिएगा एक दिन आकर
मेरे बदन में कोई मेरे मासिवा भी है
चेहरे को अपने फूल से कब तक बचायेगा - राहत इन्दौरी
चेहरे को अपने फूल से कब तक बचायेगा
ये आईना कभी न कभी टूट जायेगा
गुंचे अगर हंसेंगे तो कहलायेगी बहार
मैं मुस्कुरा दिया तो निगाहों में आयेगा
ज़ख़्मों के फूल महकेंगे जब शाम आयेगी
दिन डूबने के साथ ही दिल डूब जायेगा
मासूम पत्तियों का लहू पी के सुर्ख है
ये फूल अब चमन में कोई गुल खिलायेगा
कितनी उदास रात है सरवर को ढूँढिये
वो मिल गया तो कोई लतीफा सुनायेगा
एक दिन देखकर उदास बहुत - राहत इन्दौरी
एक दिन देखकर उदास बहुत
आ गए थे वो मेरे पास बहुत
ख़ुद से मैं कुछ दिनों से मिल न सका
लोग रहते हैं आस-पास बहुत
अब गिरेबाँ बा-दस्त हो जाओ
कर चुके उनसे इल्तेमास बहुत
किसने लिक्खा था शहर का नोहा
लोग पढ़कर हुए उदास बहुत
अब कहाँ हम-से पीने वाले रहे
एक टेबल पे इक गिलास बहुत
तेरे इक ग़म ने रेज़ा-रेज़ा किया
वर्ना हम भी थे ग़म-श्नास बहुत
कौन छाने लुगात का दरिया
आप का एक इक्तेबास बहुत
ज़ख़्म की ओढ़नी, लहू की कमीज़
तन सलामत रहे लिबास बहुत
ख़ुद अपने आपको पहचान लो तो खोलो राज़ - राहत इन्दौरी
ख़ुद अपने आपको पहचान लो तो खोलो राज़
निगाह चाहिए ख़ुद आईना है आईना साज़
यही पुराने खंडर हैं हमारी तहज़ीबें
यहीं पे बूढ़े कबूतर हैं और यहीं शहबाज़
यहाँ के लोग तो हाकिम के सामने हैं फकीर
यहाँ न अब कोई महमूद है ना कोई अयाज़
ज़रूर पार उतारेंगे एक दिन हमको
ये आँधियों के समुन्दर ये काग़ज़ों के जहाज़
बिखर भी जाऊँ लबों पर तो खुल नहीं सकता
तेरी नज़र में छुपा है मेरी ग़ज़ल का जवाज़
बुलन्दियों की तलब है तो पस्तियों में चलो
समन्दरों ने छुपाया है परबतों का राज़
मेरी ग़ज़ल मेरे सीने की आग है यारों
मैं कालिदास ना शैले ना हाफ़िज़ और मजाज़
समन्दरों पे कोई शहर बसने वाला है - राहत इन्दौरी
समन्दरों पे कोई शहर बसने वाला है
दिमाग़ सोच की गहराईयों में डूबा है
ये आज राह में पत्थर का ढेर कैसा है
ज़रूर कोई पयंबर इधर से गुज़रा है
अज़ीज़ों आज भी आँखें मेरी वहीं हैं मगर
अब इनमें तुम नहीं रहते हो ख़ून रहता है
जो पत्थरों से बुतों को तराशता था कभी
उस आदमी का सुलूक अब बुतों ही जैसा है
मैं अपने अहद की तारीख़ जब भी पढ़ता हूँ
हर एक लफ़्ज़ मुझे मरसिया सुनाता है
वो मेरी जान का दुश्मन सही मगर राहत
कभी कभी तो मेरे शे'र गुनगुनाता है
जब मैं दुनिया के लिए बेच के घर आया था - राहत इन्दौरी
जब मैं दुनिया के लिए बेच के घर आया था
उन दिनों भी मेरे हिस्से में सिफ़र आया था
लोग पीपल के दरख़्तों को ख़ुदा कहने लगे
मैं ज़रा धूप से बचने को इधर आया था
इत्तिफाक़ ऐसा के मैं घर से ना निकला वरना
ख़ून उस शख़्स की आँखों में उतर आया था
खिड़कियां बन्द ना होतीं तो झुलस ही जाता
आग उगलता हुआ सूरज मेरे घर आया था
आईना तोड़ गया फिर कोई आवारा ख़याल
मुश्किलों से तो दुआओं में असर आया था
मेरे माज़ी का खंडर इतना महकता क्यूँ है
हो ना हो कोई ज़रूर आज इधर आया था
मैंने माना के मेरी उम्र है चौदह सौ साल
हाँ मगर इससे भी पहले मैं इधर आया था
तेरी आँखों की हद से बढ़ कर हूँ - राहत इन्दौरी
तेरी आँखों की हद से बढ़ कर हूँ
दश्त मैं आग का समन्दर हूँ
कोई तो मेरी बात समझेगा
एक क़तरा हूँ और समन्दर हूँ
तोड़ डाला है जिस्म का ज़ीनदाँ
आज मैं अपने घर के बाहर हूँ
झूठ के नर्क में ना डाल मुझे
लोग कहते हैं मैं युधिष्ठिर हूँ
मैं भी इक मुंजमिद सदा हूँ मगर
खैर से गुम्बदों के बाहर हूँ
मेरी गर्दन में भी हैं गम के नाग
मैं भी अपने समय का शंकर हूँ
अब अपने लहज़े में नरमी बहुत ज़्यादा है - राहत इन्दौरी
अब अपने लहज़े में नरमी बहुत ज़्यादा है
नये बरस में नयी जंग का इरादा है
मैं अपनी लाश लिए फिर रहा हूँ कांधों पर
यहाँ ज़मीन की कीमत बहुत ज़्यादा है
ख़बर नहीं के हवा किस तरफ़ उड़ा ले जाये
हमारी नस्ल बिखरता हुआ बुरादा है
महल में ख़ास मसाहिब भी जा नहीं सकते
वहाँ हरम की कनीज़ें हैं शाहज़ादा है
तुम्हारा तरकश ए इल्ज़ाम भी नहीं खाली
हमारा सीना ए अख़लाक भी कुशादा है
अज़ाँ सुनता था लेकिन नींद के दलदल में रहता था - राहत इन्दौरी
अज़ाँ सुनता था लेकिन नींद के दलदल में रहता था
मैं पहले भी मुसलमाँ था मगर बोतल में रहता था
जिसे दे दी दुआ वो कीमती मखमल में रहता था
मगर वो ख़ुद हमेशा एक फटे कम्बल में रहता था
मुझे माज़ी की काली नागिनें डसने को आती थीं
मैं पुरखों की हवेली छोड़ के होटल में रहता था
वो दोहरी शहरियत रखता था कोई उससे क्या मिलता
कभी दिल्ली में रहता था कभी चम्बल में रहता था
धुएँ के रंग से शहरों की दीवारों पे लिक्खा है
बहुत महफ़ूज़ था इंसान जब जंगल में रहता था
बन के इक दिन हम ज़रूरतमंद गिनते रह गये - राहत इन्दौरी
बन के इक दिन हम ज़रूरतमंद गिनते रह गये
कितने दरवाज़े हुए है बंद गिनते रह गये
कौड़ियों के मोल ले ली मैने सारी कायनात
सब मेरी पोशाक के पैबन्द गिनते रह गये
वो अकेला था निहत्था था जो बाज़ी ले गया
और हम अपने जवाँ फ़रज़ंद गिनते रह गये
इतनी दौलत इक भिखारी के यहाँ निकली के बस
शहर के जितने थे दौलतमंद गिनते रह गये
शाख़ पर जितने थे फल कोई चुरा कर ले गया
और हम अख़लाक के पाबन्द गिनते रह गये
बुज़ुर्ग मट्टी की अज़मत के एतराफ़ में है - राहत इन्दौरी
बुज़ुर्ग मट्टी की अज़मत के एतराफ़ में है
ये मकबरा है मगर रेशमी गिलाफ़ में है
नमाज़ियों के तक़द्दुस पे तंज़ करता था
वो बदमआाश कई दिन से एतकाफ़ में है
रफाक़तों के हवाले से ज़िक्र आता है
बड़ा खुलूस तेरे मेरे इख्तिलाफ़ में है
सवेरे तक तो मुझे बर्फ़ करके रख देगा
अकेलेपन का जो मौसम मेरे लिहाफ़ में हे
हैं ख़ुशबुयों के तआक्कुब में रेंगते कछुए
मगर वो मुश्क अभी तक हिरन की नाफ़ में है
धूप समंदर चेहरा है - राहत इन्दौरी
धूप समंदर चेहरा है
मंज़र कितना गहरा है
देख चुके हम सारा शहर
अच्छा खासा सहरा है
मेरी आँखों से देखो
वो चेहरा ही चेहरा है
गंदुम सब जहरीले हैं,
ज़ाहिर खेत सुनहरा है
अपनी बयासे हस्ती में
हर मिस्रा बे बहरा है
रोने पर ही कैद नहीं
हंसने पे भी पहरा है
दरिया दरिया छान चुके
साहिल सबसे गहरा है
फ़ैसले लम्हात के नस्लों पे भारी हो गए - राहत इन्दौरी
फ़ैसले लम्हात के नस्लों पे भारी हो गए
बाप हाकिम था मगर बेटे भिकारी हो गए
देवियाँ पहुँचीं थीं अपने बाल बिखराए हुए
देवता मंदिर से निकले और पुजारी हो गए
रौशनी की जंग में तारीकियाँ पैदा हुईं
चाँद पागल हो गया तारे भिकारी हो गए
रख दिए जाएँगे नेज़े लफ़्ज़ और होंटों के बीच
ज़िल्ल-ए-सुब्हानी के अहकामात जारी हो गए
नर्म-ओ-नाज़ुक हल्के-फुल्के रूई जैसे ख़्वाब थे
आँसुओं में भीगने के ब'अद भारी हो गए
जंग है तो जंग का मंज़र भी होना चाहिए - राहत इन्दौरी
जंग है तो जंग का मंज़र भी होना चाहिए
सिर्फ़ नेज़े हाथ में हैं सर भी होना चाहिए
है धुआँ चारों तरफ बीनाई लेकर क्या करूं
सिर्फ़ आँखें ही नहीं मंज़र भी होना चाहिए
लेके इक मुश्ते ज़मीं उड़ते हो लेकिन सोच लो
आसमाँ के ढाँपने को पर भी होना चाहिए
मसअले कूछ और हैं बे चेहरा लोगों के लिए
आईने काफ़ी नहीं पत्थर भी होना चाहिए
ताना ए आवारगी मुझको ना दो किस्मत को दो
घर तो जा सकता हूं लेकिन घर भी होना चाहिए
ये ज़िन्दगी किसी गूंगे का ख़्वाब है बेटा - राहत इन्दौरी
ये ज़िन्दगी किसी गूंगे का ख़्वाब है बेटा
संभल के चलना के रस्ता ख़राब है बेटा
हमारा नाम लिखा है पुराने किलओं पर
मगर हमारा मुकद्दर ख़राब है बेटा
गुनाह करना किसी बेगुनाह की ख़ातिर
मेरी निगाह में कार-ए-सवाब है बेटा
अब और ताश के पत्तों की सीढ़ियों पे ना चढ़
के इसके आगे ख़ुदा का अज़ाब है बेटा
हमारे सहन की मेहँदी पे है नज़र उसकी
ज़मीनदार की नीयत ख़राब है बेटा
क़तरा क़तरा खूब उछालें गंगा जी - राहत इन्दौरी
क़तरा क़तरा खूब उछालें गंगा जी
हम प्यासों पर हाथ न डालें गंगा जी
बस्ती वाले सब कुछ देखते रहते हैं
साहिल पर दीवार उठा लें गंगा जी
कैसे कैसे लोगों ने असनान किया
हुक्म मिले तो हम भी नहा लें गंगा जी
हम तो किनारे के पानी में डूबे हैं
देखें कितनी दूर निकालें गंगा जी
सारी दुनिया आपको अमृत कहती है
फूलों पर तेज़ाब ना डालें गंगा जी
मेरा भी नाम खाकनशी रख के भूल जाये - राहत इन्दौरी
मेरा भी नाम खाकनशी रख के भूल जाये
दुनिया मुझे भी ज़ेरे ज़मीं रख के भूल जाये
एक शख़्स तेरे दर से हुकूमत तलब करे
एक शख़्स तेरे दर पे जबीं रख के भूल जाये
वो भूल भूल जाता है हर बात आजकल
ऐसा ना हो के ख़ुद को कहीं रख के भूल जाये
मैं जानता हूँ भूलना आसाँ नहीं मगर
वो मुझको भूलने पे यकीं रख के भूल जाये
उसका यहाँ पे कुछ भी नहीं है उसे कहो
जो चीज़ है जहाँ की वहीं रख के भूल जाये
लम्हा लम्हा जंग है कुछ देर मोहलत चाहिए - राहत इन्दौरी
लम्हा लम्हा जंग है कुछ देर मोहलत चाहिए
साहिबों अच्छी गज़ल कहने को फुरसत चाहिए
खुद्कुशी को बुजदिली कहना समझ का फेर है
मौत से आँखें मिलाने में भी हिम्मत चाहिए
गालियाँ लिखी गयी अपने खुदा के लिए
जिस तरह भी नील सके लोगों को शोहरत चाहिए
उसकी जब मर्जी हो मुझको लूट सकता है मगर
वो मुहज्जब है उसे मेरी इज़ाज़त चाहिए
शायरी, आवारगी, खुशबु, वफ़ा, लज़्ज़त, शराब
मुख्तलिफ शक्लो में शहजादे को औरत चाहिए
जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं - राहत इन्दौरी
जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं
कुलाह तौक़ से भारी पहन के आते हैं
अमीर-ए-शहर तिरी तरह क़ीमती पोशाक
मिरी गली में भिकारी पहन के आते हैं
यही अक़ीक़ थे शाहों के ताज की ज़ीनत
जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं
हमारे जिस्म के दाग़ों पे तब्सिरा करने
क़मीसें लोग हमारी पहन के आते हैं
इबादतों का तहफ़्फ़ुज़ भी उन के ज़िम्मे है
जो मस्जिदों में सफ़ारी पहन के आते हैं
सब हुनर अपनी बुराई में दिखाई देंगे - राहत इन्दौरी
सब हुनर अपनी बुराई में दिखाई देंगे
ऐब तो बस मेरे भाई में दिखाई देंगे
उसकी आँखों में नज़र आएँगे इतने सूरज
जितने पैबन्द रज़ाई में दिखाई देंगे
हमने अपनी कई सदियाँ यहीं दफनाई हैं
हम ज़मीनों की ख़ुदाई में दिखाई देंगे
ज़िक्र रिश्तों के तह्हफुज़ का जो निकलेगा तो हम
राजपूतों की कलाई में दिखायी देंगे
और कुछ रोज़ है झीलों पे सुलगती हुई रेत
सब्ज़ मंज़र भी जुलाई में दिखाई देंगे
मस्जिद खाली खाली है - राहत इन्दौरी
मस्जिद खाली खाली है
बस्ती में कव्वाली है
हम जैसों से खाली है
दुनिया किस्मत वाली है
नूर जहाँ है पहलू में
दिल में सब्ज़ी वाली है
माज़ी हो या मुस्तकबिल
अपनी यही बेहाली हे
दरिया फिर भी दरिया है
जग ने प्यास बुझा ली है
दुनिया पहले पत्थर थी
हमने मोम बना ली है
साया साया ढूँढ़ उसे
जिसने धूप निकाली है
कुछ तब्दीली हो यारो
बरसों से ख़ुशहाली है
वो इक इक बात पे रोने लगा था - राहत इन्दौरी
वो इक इक बात पे रोने लगा था
समुंदर आबरू खोने लगा था
लगे रहते थे सब दरवाज़े फिर भी
मैं आँखें खोल कर सोने लगा था
चुराता हूँ अब आँखें आइनों से
ख़ुदा का सामना होने लगा था
वो अब आईने धोता फिर रहा है
उसे चेहरे पे शक होने लगा था
मुझे अब देख कर हँसती है दुनिया
मैं सब के सामने रोने लगा था
मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की - राहत इन्दौरी
मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की
दाद लोगों की गला अपना ग़ज़ल उस्ताद की
अपनी साँसें बेच कर मैं ने जिसे आबाद की
वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की
उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर
ज़िंदगी को ढूँडने में ज़िंदगी बर्बाद की
दास्तानों के सभी किरदार कम होने लगे
आज काग़ज़ चुनती फिरती है परी बग़दाद की
इक सुलगता चीख़ता माहौल है और कुछ नहीं
बात करते हो 'यगाना' किस अमीनाबाद की
मेरे मरने की ख़बर है उसको - राहत इन्दौरी
मेरे मरने की ख़बर है उसको
जाने किस बात का डर है उसको
बन्द रखता है वो आँखें अपनी
शाम की तरह सहर है उसको
मैं किसी से भी मिलूँ कुछ भी करूं
मेरी नीयत की ख़बर है उसको
भूल जाना भी उसे सहल नहीं
याद रखना भी हुनर है उसको
मंज़िलें साथ लिए फिरता है
कितना दुश्वार सफ़र है उसको
क्यूं भड़क उठता है जलते जलते
कुछ हवाओं का असर है उसको
अब वो पहला सा नज़र आता नहीं
ऐसा लगता है नज़र है उसको
मैं लाख कह दूँ के आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं - राहत इन्दौरी
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं
मगर उसे तो ख़बर है कि कुछ नहीं हूँ मैं
अजीब लोग हैं मेरी तलाश में मुझ को
वहाँ पे ढूँड रहे हैं जहाँ नहीं हूँ मैं
मैं आईनों से तो मायूस लौट आया था
मगर किसी ने बताया बहुत हसीं हूँ मैं
वो ज़र्रे ज़र्रे में मौजूद है मगर मैं भी
कहीं कहीं हूँ कहाँ हूँ कहीं नहीं हूँ मैं
वो इक किताब जो मंसूब तेरे नाम से है
उसी किताब के अंदर कहीं कहीं हूँ मैं
सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं
यहीं हुसैन भी गुज़रे यहीं यज़ीद भी था
हज़ार रंग में डूबी हुई ज़मीं हूँ मैं
ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं
कहाँ वो ख़्वाब महल ताजदारियों वाले - राहत इन्दौरी
कहाँ वो ख़्वाब महल ताजदारियों वाले
कहां ये बेलचों वाले तगारियों वाले
कभी मचान से नीचे उतर के बात करो
बहुत पुराने हैं क़िस्से शिकारियों वाले
मुझे ख़बर है के मैं सल्तनत का मालिक हूँ
मगर बदन पे हैं कपड़े भिखारियों वाले
ग़रीब. क़स्बों में अक्सर दिखाई देते हैं
नये शिवाले पुराने पुजारियों वाले
ज़मीं पे रेंगते फिरने की हमको आदत है
हमारे साथ ना आयें सवारियों वाले
अदब कहां का के हर रात देखता हूं मैं
मुशायरे में तमाशे मदारियों वाले
मेरी बहार मेरे घर के फूलदान में है
खिले हैं फूल हरी पीली धारियों वाले
कहीं लिबास की सूरत उतार दे मुझको - राहत इन्दौरी
कहीं लिबास की सूरत उतार दे मुझको
अज़ाब ए रूह कोई इख़तियार दे मुझको
मैं गर्द गर्द हूँ ख़ुद को ना देख पाऊँगा
तू आईना है तो आकर संवार दे मुझको
अलिफ से ये तलक एक एक हर्फ दुश्मन है
वो हमसुखन ही नहीं है जो प्यार दे मुझको
मैं तुझको रोशनियां दे के जाऊँगा एक दिन
अंधेरी रात समझ कर गुज़ार दे मुझको
वो मुझसे कह के गया है के लौट आऊँगा
मेरे अज़ीम ख़ुदा एतबार दे मुझको
ना मुआफिक मेरे अन्दर की फ़ज़ा कैसी है - राहत इन्दौरी
ना मुआफिक मेरे अन्दर की फ़ज़ा कैसी है
टूट जाने की बिखरने की सदा कैसी है
गुल खिलाने को है मौसम कोई ताज़ा इस बार
बाद ए सर सर की तरह बाद ए सबा कैसी है
कुछ लकीरें सी हवायों पे बना दीं उसने
मैंने पूछा था के तस्वीर ए ख़ुदा कैसी है
दिल का आईना यहीं घर में छुपा कर निकलो
लोग तो सिर्फ़ ये देखेंगे क़बा कैसी है
ये कहाँ ले के चले आये हो पलकों के चिराग़
तुमको मालूम नहीं है के हवा कैसी है
सुलह करते हैं के जीने का हुनर जानते हैं - राहत इन्दौरी
सुलह करते हैं के जीने का हुनर जानते हैं
वरना इम जंग के मैदान को घर जानते हैं
ये अलग बात के पस्ती में पड़े हैं वरना
चाँद तारों को तो हम राहगुज़र जानते हैं
कोई आंगन है दरीचा है ना गुलदान ना फूल
लोग दीवारें उठा लेने को घर जानते हैं
फूल की शाख पे लिख भेजो के ऐ दुश्मन-ए-अम्न
हम भी तलवार चलाने का हुनर जानते हैं
मेरे अल्लाह मेरी तौबा को कायम रखना
कुछ शराबी हैं जो अब भी मेरा घर जानते हैं
इश्क़ ने गूँथे थे जो गजरे नुकीले हो गये - राहत इन्दौरी
इश्क़ ने गूँथे थे जो गजरे नुकीले हो गये
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गये
फूल बेचारे अकेले रह गये हैं शाख़ पर
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गये
परबतों पर बर्फ चमकी खेत में मोती उगे
मौसमों की चोलियों के बन्द ढीले हो गये
क्या ज़रूरी है करें विषपान हम शिव की तरह
सिर्फ़ जामुन खा लिए और होंठ नीले हो गये
इंक़लाब अब कौनसे रस्ते से आये क्या खबर
कल जहाँ पर खन्दकें थीं, आज टीले हो गये
और कितनी नफ़रतें बोएगी ये बूढ़ी ज़मीं,
जितने घर थे गाँव में उतने कबीले हो गये
जो दे रहे हैं फल तुम्हे पके पकाए हुए - राहत इन्दौरी
जो दे रहे हैं फल तुम्हे पके पकाए हुए
वोह पेड़ मिले हैं तुम्हे लगे लगाये हुए
ज़मीर इनके बड़े दागदार है
ये फिर रहे है जो चेहरे धुले धुलाए हुए
जमीन ओढ़ के सोये हैं दुनिया में
न जाने कितने सिकंदर थके थकाए हुए
यह क्या जरूरी है की गज़ले ख़ुद लिखी जाए
खरीद लायेंगे कपड़े सिले सिलाये हुए
हमारे मुल्क में खादी की बरकते हैं मियां
चुने चुनाए हुए हैं सारे छटे छटाये हुए
उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब - राहत इन्दौरी
उसकी कत्थई आँखों में हैं, जंतर-मंतर सब
चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब
मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब
जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं
चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब
जाने मैं किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते हैं
कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब
इश्क विश्क के सारे नुस्ख़े मुझसे सीखते हैं
ताहर वाहर, मंज़र वंज़र, जौहर वोहर सब
निशाने चूक गए सब निशान बाकी है - राहत इन्दौरी
निशाने चूक गए सब निशान बाकी है
शिकारगाह में खाली मचान बाकी है
ये अलग बात के अब ख़ुशबुएँ नहीं लेकिन
हमारे ताक में एक इत्रदान बाकी है
फिर एक बच्चे ने लाशों के ढेर पर चढ़कर
ये कह दिया के अभी खानदान बाकी है
ज़मीन दूर है और आस पास कोई नहीं
मैं किससे से पूछूं के कितनी उड़ान बाकी है
अदालतों को अभी इन्तज़ार है उसका
वो जिस गवाह के मुँह में ज़ुबान बाकी है
कश्मीर - राहत इन्दौरी
धुआँ-धुआँ...
धुआँ-धुआँ...
धुआँ-धुआँ, धुआँ ही धुआं...
ये साजिशें दिशाओं की, ये साजिशें हवाओं की,
लहुलुहान हो गयी ज़मीं ये देवताओं की,
ना शंख की सदाएँ हैं, ना अब सदा अज़ान की
नज़र मेरी ज़मीन को लगी है आसमान की
हैं दर बदर ये लोग क्यूँ जले हैं क्यूँ मकाँ
धुआँ-धुआँ, धुआँ ही धुआँ...
ये किसने आग डाल दी है, नर्म नर्म घास पर,
लिखा हुआ है ज़िन्दगी यहां हर एक लाश पर
ये तख्त की लड़ाई है, ये कुर्सियों की जंग है
ये बेगुनाह ख़ून भी सियासतों का रंग है
लकीर खेंच दी गयी दिलों के दरमियाँ
धुआँ-धुआँ, धुआँ ही धुआँ...
आवाज़ की सालगिरह - राहत इन्दौरी
(लता मंगेशकर के जन्मदिन पर कही गयी नज़्म)
धनक है, रंग है, एहसास है कि ख़ुशबू है
चमक है, नूर है, मुस्कान है कि आँसू है
मैं नाम क्या दूं उजालों की इन लकीरों को,
खनक है रक्स है आवाज़ है कि जादू है
जो लब हिलें तो ज़माने धड़कने लगते हैं
सुरों के सात कटोरे छलकने लगते हैं
वो तान है कि हवाएँ ठहर सी जाती हैं
वो मुरकियां के कलेजे थिरकने लगते हैं
जो छेड़ दे कोई नगमा तो खिल उठें तारे
हवा में उड़ने लगें रोशनी के फव्वारे
आलाप सुनते ही नज़रों में तैर जाते हैं
दुआएँ करते हुए मस्जिदों के मीनारे
नया साल - राहत इन्दौरी
एक ख़्वाब जो गुज़रा है अभी पिछले बरस का
आतंक का घपलों का जुलूसों का हवस का
हर रंग से एक रंग नया आँक रहा है
सैलाब का तूफ़ान का बारिश का उमस का
ये रेंगते मौसम ये खिसकते हुए दिन रात
ये बदली हुई दुनिया बदलते हुए हालात
एक टूटे हुए चाक पे हम घूम रहे हैं
मालूम नहीं अब के अज़ाब आये या सौगात
दीवार के ख़ुशरंग कलेंडर ख़ुदा हाफ़िज़
ए जाते हुए माह दिसम्बर ख़ुदा हाफ़िज़
आंखें नयी उम्मीद लिए चीख रही हैं
ए उम्र के चलते हुए चक्कर ख़ुदा हाफ़िज़
भूचाल अगर आये तो भूचाल मुबारक
जंजाल अगर आये तो जंजाल मुबारक
बारूद के एक ढेर पे बैठे हुए हम लोग
किस धूम से कहते हैं नया साल मुबारक...
पानी - राहत इन्दौरी
बादल बादल सन्नाटा है, नदी नदी वीरानी
पानी, पानी, पानी...
आँखों आँखों प्यास लिखी है, कौन कहानी बांचे,
सावन ने सन्यास ले लिया, मोर कहाँ से नाचे...
जोगी झरने, विधवा झीलें, दुश्मन बरखा रानी
पानी, पानी, पानी...
पनघट पनघट छाती पीटे, रोये गागर गागर
हांफ रहा है, पंख पसारे, गर्म रेत का सागर...
पुरवाई के नर्म परों पर, धूप की है निगरानी
पानी, पानी, पानी...
आँखों से भी रूठ चुकी है अब तो बूंदा बांदी,
पानी बाबा जाने किस दिन आएँगे लेकर चांदी..
कब तक मेरे देस में होगी सूरज की मनमानी
पानी, पानी, पानी...
फ़सलें खाली हाथ खड़ी हैं, पाँव जले मौसम के
अब तो किरपा करो राम जी, घन घन बरसो जम के,
धरती मां की मोरी चुनरिया, होगी अब तो धानी
पानी, पानी, पानी...
क़तआत - राहत इन्दौरी
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुएँ की तरह परवतों से उड़ते हैं,
ये कैचियां हमें उड़ने से खाक रोकेंगी,
के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
लाल पीले कई रंगों के अलम आएँगे
और आख़िर में यही होगा के हम आएँगे
इस बरस हमने ज़मीनों में धुआँ बोया है
फल नहीं आएँगे अब शाखों पे बम आएँगे
जवानियों में जवानी को धूल करते हैं
जो लोग भूल नहीं करते भूल करते हैं
अगर अनारकली है सबब बगावत का
सलीम हम तेरी शर्तें कुबूल करते हैं
सारी क़दरें ही सियासत में बदल डाली हैं
हाथ अब कोई मिलाता है तो डर लगता है
पहले काँटों को भी आँखों से लगा लेता था
अब कोई फूल भी लाता है तो डर लगता है
नये सफ़र का नया इन्तज़ाम कह देंगे
हवा को धूप, चरागों को शाम कह देंगे
किसी से हाथ भी छुप कर मिलाइये वरना
इसे भी मौलवी साहब हराम कह देंगे
जवान आंखों के जुगनू चमक रहे होंगे
अब अपने गांव में अमरूद पक रहे होंगे
भुला दे मुझको मगर, मेरी उँगलियों के निशां
तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे
हर सुबह है वही मातम दर ओ दीवार के साथ
कितनी लाशें मेरे घर आएँगी अखबार के साथ
आज वो चुप हैं जो पहले बहुत बोलते थे
लोग समझौता किए बैठे हैं सरकार के साथ
(getButton) #text=(Jane Mane Kavi) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Hindi Kavita) #icon=(link) #color=(#2339bd) (getButton) #text=(Rahat Indori) #icon=(link) #color=(#2339bd)