Hindi Kavita
हिंदी कविता
सारे बादल हैं उसी के, वो अगर चाहे तो - राहत इन्दौरी
सारे बादल हैं उसी के, वो अगर चाहे तो
मेरे तपते हुए सहरा को समंदर कर दे
धूप और छांव के मालिक मेरे बूढ़े सूरज
मेरे साये को मेरे क़द के बराबर कर दे
तेरे हाथों में है तलवार, मेरे लब पे दुआ
सूरमा आ मुझे मैदान के बाहर कर दे
इम्तिहां ज़र्फ़ का हो जाएगा साक़ी लेकिन
पहले हम सब के गिलासों में बराबर कर दे
है नमाज़ी कि शराबी, ये कोई शर्त नहीं
वो जिसे चाहे मुक़द्दर का सिकन्दर कर दे
गांव की बेटी की इज़्ज़त तो बचा लूं लेकिन
मुझे मुखिया न कहीं गांव के बाहर कर दे
मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया - राहत इन्दौरी
मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया
एक पागल ने बहुत लोगों को पागल कर दिया
अपनी पलकों पर सजा कर मेरे आँसू आप ने
रास्ते की धूल को आँखों का काजल कर दिया
मैं ने दिल दे कर उसे की थी वफ़ा की इब्तिदा
उस ने धोका दे के ये क़िस्सा मुकम्मल कर दिया
ये हवाएँ कब निगाहें फेर लें किस को ख़बर
शोहरतों का तख़्त जब टूटा तो पैदल कर दिया
देवताओं और ख़ुदाओं की लगाई आग ने
देखते ही देखते बस्ती को जंगल कर दिया
ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया
शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है
जिस ने अच्छे-ख़ासे इक शायर को पागल कर दिया
समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है - राहत इन्दौरी
समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है
जहाज़ खुद नहीं चलते खुदा चलाता है
ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आये
वो हम नहीं हैं, जिन्हें रास्ता चलाता है
वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाजों में
मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है
ये लोग पांव नहीं जेहन से अपाहिज हैं
उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है
हम अपने बूढे चिरागों पे खूब इतराए
और उसको भूल गए जो हवा चलाता है
दोस्त है तो मेरा कहा भी मान - राहत इन्दौरी
दोस्त है तो मेरा कहा भी मान
मुझसे शिकवा भी कर, बुरा भी मान
दिल को सबसे बड़ा हरीफ़' समझ
और इसी संग को खुदा भी मान
मैं कभी सच भी बोल देता हूँ
गाहे गाहे, मेरा कहा भी मान
याद कर, देवताओं के अवतार
हम फ़कीरों का सिलसिला भी मान
मेरी तकदीर में है, मेरे हवाले होंगे - राहत इन्दौरी
मेरी तकदीर में है, मेरे हवाले होंगे।
वक्त के हाथ में गर ज़हर के प्याले होंगे।
मस्ज़िदें होंगी, कलीसा, न शिवाले होंगे।
इतने नज़दीक तेरे चाहने वाले होंगे।
जिन चरागों से ताअससुब का धुआँ उठता हो,
उन चरागों को बुझा दो तो उजाले होंगे।
मैं अगर वक्त का सुकरात भी बन जाऊँ तो क्या,
मेरे हिस्से में वही ज़हर के प्याले होंगे।
सुलगते सारे छप्पर लग रहे है - राहत इन्दौरी
सुलगते सारे छप्पर लग रहे है
कवेलू मकबरों पर लग रहे है
बबूल आँगन मैं बोया जा रहा है
पहाड़ों पर सनोबर लग रहे है
मगर अन्दर कोई सहरा छुपा है
बजाहिर हम समंदर लग रहे हैं
जहालत को सनद बख्शी गयी है
सितारे पत्थरों पर लग रहे हैं
बहुत रंगीन तबियत हैं परिंदे
दरख्तों पर कैलेंडर लग रहे है
उकाब उन मैं कोई होगा तो होगा
हमें तो सब कबूतर लग रहे हैं
यहाँ दरिया पे पाबंदी नहीं है
मगर पहरे लबों पर लग रहे हैं
खुदा से काम कोई आ पड़ा है
बहुत मस्जिद के चक्कर लग रहे है
सारी फ़ितरत तो नकाबों में छिपा रक्खी थी - राहत इन्दौरी
सारी फ़ितरत तो नकाबों में छिपा रक्खी थी
सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रक्खी थी
हम दिया रख के चले आए हैं देखें क्या हो
उस दरीचे पे तो पहले से हवा रक्खी थी
मेरी गरदन पे थी तलवार मेरे दुश्मन की
मेरे बाजू पर मेरी माँ की दुआ रक्खी थी
शहर में रात मेरा ताज़ियती जलसा था
सब नमाज़ी थे मगर सबने लगा रक्खी थी
मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया - राहत इन्दौरी
मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया
एक पागल ने बहुत लोगों को पागल कर दिया
अपनी पलकों पर सजा कर मेरे आँसू आप ने
रास्ते की धूल को आँखों का काजल कर दिया
मैं ने दिल दे कर उसे की थी वफ़ा की इब्तिदा
उस ने धोका दे के ये क़िस्सा मुकम्मल कर दिया
ये हवाएँ कब निगाहें फेर लें किस को ख़बर
शोहरतों का तख़्त जब टूटा तो पैदल कर दिया
देवताओं और ख़ुदाओं की लगाई आग ने
देखते ही देखते बस्ती को जंगल कर दिया
ज़ख़्म की सूरत नज़र आते हैं चेहरों के नुक़ूश
हम ने आईनों को तहज़ीबों का मक़्तल कर दिया
शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है
जिस ने अच्छे-ख़ासे इक शायर को पागल कर दिया
दोस्ती जब किसी से की जाए - राहत इन्दौरी
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
मौत का ज़हर है फ़ज़ाओं में
अब कहाँ जा के साँस ली जाए
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ
ये नदी कैसे पार की जाए
अगले वक़्तों के ज़ख़्म भरने लगे
आज फिर कोई भूल की जाए
लफ़्ज़ धरती पे सर पटकते हैं
गुम्बदों में सदा न दी जाए
कह दो इस अहद के बुज़ुर्गों से
ज़िंदगी की दुआ न दी जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों
आज दिल खोल कर ही पी जाए
दोस्त है...तो मेरा कहा भी मान - राहत इन्दौरी
दोस्त है... तो मेरा कहा भी मान
मुझसे शिकवा भी कर, बुरा भी मान
दिल को सबसे बड़ा हरीफ़ समझ
और इसी संग को खुदा भी मान
मैं कभी सच भी बोल देता हूँ
गाहे गाहे, मेरा कहा भी मान
याद कर, देवताओं के अवतार
हम फ़कीरों का सिलसिला भी मान
समंदर पार होती जा रही है - राहत इन्दौरी
समंदर पार होती जा रही है
दुआ पतवार होती जा रही है
कई दिन से मेरे अंदर की मस्जिद
खुदा-बेजार होती जा रही है
मसाइल, जँग, खुशबू, रँग, मौसम,
ग़ज़ल, अखबार होती जा रही है
कटी जाती हैं साँसों की पतंगें,
हवा तलवार होती जा रही है
गले कुछ दोस्त आकर मिल रहे हैं,
छुरी पर धार होती जा रही है
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