नया दौर - सुव्रत शुक्ल | Naya Daur - Suvrat Shukla

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नया दौर

क्यों रात अंधेरी देखूं मैं,
कल होगा नया उजाला।
संघर्षों का यह समय नहीं,
अब ज्यादा रहने वाला।।

माना ऐसे दुःख के दिन भी,
आते हैं सबके जीवन में।
ये हमें तोड़ते नहीं कभी,
जीना सिखलाते जीवन में।।

आने वाला कल बेहतर हो,
इसलिए आज जागूंगा।
पहचान बनाने को अपनी,
आराम त्याग भागूंगा।।

जायेगा जब यह दौर बीत,
कल नया दौर आयेगा।
संघर्षों की आंधियों बाद,
एक नया मोड़ आयेगा।।

चलता जाऊंगा बिना रुके,
आगाज़ नया आयेगा।
मेरे पदचिह्नों पर चलकर,
ये गीत कोई गाएगा।।

"क्यों रात अंधेरी देखूं मैं,
कल होगा नया उजाला।
संघर्षों का यह समय नहीं,
अब ज्यादा रहने वाला।।"

         - सुव्रत शुक्ल

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