Hindi Kavita
हिंदी कविता
शब्द तो शोर है, तमाशा है - Gopal Das Neeraj
शब्द तो शोर है, तमाशा है,
भाव के सिन्धु में बताशा है,
मर्म की बात होंठ से न कहो
मौन ही भावना की भाषा है ।
देह तो सिर्फ साँस का घर है - Gopal Das Neeraj
देह तो सिर्फ साँस का घर है,
साँस क्या? बोलती हवा भर है,
तुम मुझे अच्छा-बुरा कुछ न कहो
आदमी वक्त का हस्ताक्षर है।
आदमी ने वक्त को ललकारा है - Gopal Das Neeraj
आदमी ने वक्त को ललकारा है,
आदमी ने मौत को भी मारा है,
जीते हैं आदमी ने सारे लोक
आदमी खुद से मगर हारा है।
आदमी फौलाद को पी सकता है - Gopal Das Neeraj
आदमी फौलाद को पी सकता है,
आदमी चट्टान को सी सकता है,
यह तो सब ठीक, मगर प्यार बिना
आदमी कहीं भी न जी सकता है।
सपनों पै जमी गर्द बुहारी गई - Gopal Das Neeraj
सपनों पै जमी गर्द बुहारी गई,
गीतों में टंकी याद बिसारी न गई,
हर हाल में जीने का सबक सीख लिया,
पर प्यार बिना उम्र गुजारी न गई।
चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर में देखो - Gopal Das Neeraj
चल रहे हैं जो उन्हें चल के डगर में देखो,
तैरने वाले को तट से न, लहर से देखो,
देखना ही है जो इन्सान में भगवान तुम्हें,
आदमी को ही आदमी की नज़र से देखो।
जहाँ भी जाता हूँ सुनसान नज़र आता है - Gopal Das Neeraj
जहाँ भी जाता हूँ सुनसान नज़र आता है,
हरेक सिम्त बियाबान नज़र आता है,
कैसा है वक्त जो इस दिन के उजाले में भी
नहीं इन्सान को इन्सान नज़र आता है।
चाह तन-मन को गुनहगार बना देती है - Gopal Das Neeraj
चाह तन-मन को गुनहगार बना देती है,
बाग़-के-बाग़ को बीमार बना देती है,
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालो!
भूख इन्सान को गद्दार बना देती है।
क्या करेगा प्यार वह भगवान को - Gopal Das Neeraj
क्या करेगा प्यार वह भगवान को?
क्या करेगा प्यार वह ईमान को?
जन्म लेकर गोद में इन्सान की
प्यार न कर पाया जो इन्सान को।
डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में - Gopal Das Neeraj
डबडबाया है जो आँसू यह मेरी आँखों में
इसको तेरे किसी अहसान की दरकार नहीं,
जो इबादत भी करे, और शिकायत भी को
प्यार का है वह बहाना तो मगर प्यार नहीं!
कभी शरमाये हुए और कभी घबराए - Gopal Das Neeraj
कभी शरमाये हुए और कभी घबराए,
रोज़ तुम मेरे खयालों में इस तरह आए,
जैसे बरसात के दिन सूने किसी खंडहर में
चाँद बादल से कभी झाँके, कभी छुप जाए।
शोख़ शीशा सलिल नहीं होता - Gopal Das Neeraj
शोख़ शीशा सलिल नहीं होता,
अंश है यह अखिल नहीं होता,
बावले! किसको सुनाता है व्यथा
रूप के पास दिल नहीं होता।
कहना चाहा तो मगर बात बताई न गई - Gopal Das Neeraj
कहना चाहा तो मगर बात बताई न गई,
दर्द को शब्द की पोशाक पिन्हाई न गई,
और फिर खत्म हुई ऐसे कहानी अपनी
उनसे सुनते न बनी, हमसे सुनाई न गई।
हर जगह साँस ये रही मगर रही न गई - Gopal Das Neeraj
हर जगह साँस ये रही मगर रही न गई,
बात ऐसी थी कही तो मगर कही न गई,
इस तरह गुजरी तेरी याद में हर एक सुबह
पीर ज्यों कोई सही तो हो पर सहीं न गई!
आह वह रूप, वह यौवन, वह निरी शोख छटा - Gopal Das Neeraj
आह वह रूप, वह यौवन, वह निरी शोख छटा
जिसने देखी न तेरे दर से वो फिर दूर हटा,
गोरे मुखड़े पै वो बिखरी हुई बालों की लटें
चाँद को जैसे लिये गोद हो सावन की घटा।
तन हो न गुनहगार यह कब मुमकिन है - Gopal Das Neeraj
तन हो न गुनहगार यह कब मुमकिन है?
मन हो न खतावार यह कब मुमकिन है?
जब रूप लजा करके उठाए घूँघट
यौवन न करे प्यार यह कब मुमक्लि है?
आग है ये तो न ये आग कभी भी कम हो - Gopal Das Neeraj
आग है ये तो न ये आग कभी भी कम हो,
रूप है ये तो न ये रुप कभी भी खम हो,
काले बालों में वह मोती की लड़ी क्या कहना
जैसे मावस के झरोखे में खड़ी पूनम हो ।
सुख की ये घड़ी एक तो जी लेने दो - Gopal Das Neeraj
सुख की ये घड़ी एक तो जी लेने दो,
चादर ये फटी स्वप्न की सीं लेने दो,
ऐसी तो घटा फिर न कभी छाएगी
प्याला न सही, आँख से पी लेने दो ।
है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त - Gopal Das Neeraj
है नहीं कोई कमी, पर कुछ कमी लगती है दोस्त !
मुस्कराती आँख भी हर शबनमी लगती है दोस्त !
है बिछुड़ तुम से गई जब से उमर की राधिका
तब से अपनी सँस तक पी अजनबी लगती है दोस्त !
मेरी आवाज़ में तेरी लहर मालूम होती है - Gopal Das Neeraj
मेरी आवाज़ में तेरी लहर मालूम होती है,
शबे-ग़म में उतरती-सी सहर मालूम होती है,
निगाहें चार जब से हो गईं तुझसे अरे जालिम?
मुझे मेरी नज़र तेरी नज़र मालूम होती है।
काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर - Gopal Das Neeraj
काटनी थी ही सो यह कट ही गई उम्र मगर
इस तरह गुजरी हरेक रात सुबह लाने में,
जैसे फट जाय कोई कीमती रेशमी साड़ी
नीचे पल्लू के जमीं गर्द के धुलवाने में!
दिन जो निकला तो पुकारों ने परेशान किया - Gopal Das Neeraj
दिन जो निकला तो पुकारों ने परेशान किया!
रात आई तो सितारों ने परेशान किया,
गर्ज़ है ये कि परेशानी कभी कम न हुई
बीता पतझर तो बहारों ने परेशान किया!
जहाँ मैं हूँ वहाँ उम्मीद पैहम टूट जाती है - Gopal Das Neeraj
जहाँ मैं हूँ वहाँ उम्मीद पैहम टूट जाती है,
जवानी हाथ मल-मलकर वहाँ आँसू बहाती है,
चमन है, फूल है, कलियाँ हैं, खुशबू भी है, रंगत भी
मगर आकर वहाँ बुलबुल तराने भूल जाती है।
रत्न तो लाख मिले, एक ह्रदय-धन न मिला - Gopal Das Neeraj
रत्न तो लाख मिले, एक ह्रदय-धन न मिला,
दर्द हर वक्त मिला, चैन किसी क्षण न मिला,
खोजते - खोजते ढल धूप गई जीवन की
दूसरी बार सगर लौट के बचपन न मिला।
उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है - Gopal Das Neeraj
उड़ने के लिए ही जो है बनी, वह गंध सदा उड़ती ही है,
चढ़ने के लिए ही जो है बनी, वह धूप सदा चढ़ती ही है,
अफसोस न कर सलवट है पड़ी गर तेरे उजले कुरते में
कपड़ा तो है कपड़ा ही, आखिर कपड़ों पै शिकन पड़ती ही है ।
सुख न सहचर ही, लुटेरा भी हुआ करता है - Gopal Das Neeraj
सुख न सहचर ही, लुटेरा भी हुआ करता है,
खुशी में ग़म का बसेरा भी हुआ करता है,
अपनी किस्मत की सियाही को कोसने वालो!
चाँद के साथ अंधेरा भी हुआ करता है।
लहर गई तो गई, तोड़ किनारे भी गई - Gopal Das Neeraj
लहर गई तो गई, तोड़ किनारे भी गई,
छुटी उम्मीद तो सब छोड़ सहारे भी गई,
सुख की ऐ रात ! तू जाती तो न कोई ग़म था
मगर न तू ही गई लेके सितारे भी गई!
हर दिवस शाम में ढल जाता है - Gopal Das Neeraj
हर दिवस शाम में ढल जाता है,
हर तिमिर धूप में जल जाता है,
मेरे मन ! इस तरह न हिम्मत हार
वक्त कैसा हो, बदल जाता है।
हर गली गुनगुनाना ग़लती है - Gopal Das Neeraj
हर गली गुनगुनाना ग़लती है,
हर समय मुस्कुराना ग़लती है,
प्यार बस एक बार होता है
हर जगह सिर झुकाना ग़लती है।
दीप कहने से नहीं जलता है - Gopal Das Neeraj
दीप कहने से नहीं जलता है,
फूल हँसने से नहीं खिलता है,
प्यार रो-रो के माँगने वाले!
प्यार मांगे से नहीं मिलता है।
हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो - Gopal Das Neeraj
हाँ तो लिखते हो, किताबों को मगर मत चाटो,
कैंची है हाथ तो आँसू के पंख मत काटो,
खुद से आज़ाद ही होने की कला है कविता
दर्द को जाके खरीदो और प्यार को बाँटो।
गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे - Gopal Das Neeraj
गीत आकाश को धरती का सुनाना है मुझे,
हर अँधेरे को उजाले में बुलाना है मुझे,
फूल की गंध से तलवार को सर करना है
और गा-गाके पहाड़ों को जगाना है मुझे।
हम उबलते हैं तो भूचाल उबल जाते हैं - Gopal Das Neeraj
हम उबलते हैं तो भूचाल उबल जाते हैं,
हम मचलते हैं तो तूफान मचल जाते हैं,
हमको कोशिश न बदलने की करो तुम भाई!
हम बदलते हैं तो इतिहास बदल जाते हैं!
मंझधार में कूदूँ तो वह साहिल बन जाय - Gopal Das Neeraj
मंझधार में कूदूँ तो वह साहिल बन जाय,
पत्थर को भी जो छू लूँ तो वह रत्न बन जाय,
गर होश में ही अपने रहूँ मैं ऐ दोस्त !
जिस ठाँव रुके पाँव वो मंजिल बन जाय !
हर रीते हुए पत्र को हम भर देंगे - Gopal Das Neeraj
हर रीते हुए पत्र को हम भर देंगे,
हर तम की मुँडेरों पै सुबह धर देंगे,
तुम खोजा करो स्वर्ग गगन में जाकर
हम स्वर्ग इसी भूमि को लाकर देंगे।
खोजने तुम को गया मठ में विकल अरमान मेरा - Gopal Das Neeraj
खोजने तुम को गया मठ में विकल अरमान मेरा,
पत्थरों पर झुक न पाया पर सरल शिशु-ध्यान मेरा,
जन-जनार्दन की चरण-रज किन्तु जब सिर पर चढ़ाई
मिल गया मुझको सहज उस धूल में भगवान मेरा।
गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में - Gopal Das Neeraj
गो परीशाँ हूँ बहुत रूप की इस बस्ती में,
फिर भी इस बाग़ से बाहर न निकल पाता हूँ
ढीठ काँटों से जो दामन मैं बचाता हूँ तो
शोख फूलों की निगाहों से उलझ जाता हूँ।
रागिनी एक थी आँसू की मेरी उम्र मगर - Gopal Das Neeraj
रागिनी एक थी आँसू की मेरी उम्र मगर,
रही जहाँ भी वहाँ रोशनी लुटा के रही,
और जब खत्म हुई मेरी कहानी जग में
आधी दीपक ने कही, आधी पतंगे ने कही ।
याद बन-बन के कहानी लौटी - Gopal Das Neeraj
याद बन-बन के कहानी लौटी,
साँस हो-हो के बिरानी लौटी,
लौटे सब गम जो दिए दुनिया ने
किन्तु जाकर न जवानी लौटी ।
हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा - Gopal Das Neeraj
हाथों में वो शोणित से भरा घट लेगा,
कांधे पै उजालों का अरुण पट लेगा
ए तख़्त-नशीनो ! न यूँ ग़फलत में रहो
इतिहास अभी फिर कोई करवट लेगा।
जल्दी ही बहुत पाप का घट भरता है - Gopal Das Neeraj
जल्दी ही बहुत पाप का घट भरता है-
तब अपने भी साये से बशर डरता है,
तू ज़ुल्म करे और न मिटे-नामुमक़िन
रे वक्त किसी को न क्षमा करता है।
इस शहर की हर एक सड़क गन्दी है - Gopal Das Neeraj
इस शहर की हर एक सड़क गन्दी है
सूरज की किरन भी तो यहाँ अंधी है
तू चम्पा चमेली का यहाँ ज़िक्र न कर
इस बाग़ में हर खुशबू पे पाबन्दी है।
वक्त की चाल है अजब प्यारे - Gopal Das Neeraj
वक्त की चाल है अजब प्यारे
पल में प्यादे वजीर बनते हैं
और कभी यक ज़रा-सी गलती पर
शाहज़ादे फ़क़ीर बनते हैं।
कोई जाने नहीं वो किसकी है - Gopal Das Neeraj
कोई जाने नहीं वो किसकी है
वो न तेरे न मेरे बस की है
राजसत्ता तो एक वेश्या है
आज इसकी तो कल वो उसकी है
नेताओं ने गांधी की क़सम तक बेची - Gopal Das Neeraj
नेताओं ने गांधी की क़सम तक बेची
कवियों ने निराला की क़लम तक बेची
मत पूछ कि इस दौर में क्या-क्या न बिका
इन्सानों ने आँखों की शरम तक बेची।
तू कवि है तो फिर काव्य को बदनाम न कर - Gopal Das Neeraj
तू कवि है तो फिर काव्य को बदनाम न कर*
जो मन में गन्दगी है उसे आम न कर*
कविता तू जिसे कहता वो बेटी है तेरी*
चौराहे पै लाकर उसे नीलाम न कर ।*
क्या कहें यार हमें यारों ने क्या-क्या समझा - Gopal Das Neeraj
क्या कहें यार हमें यारों ने क्या-क्या समझा
क़तरा समझा तो किसी ने हमें दरिया समझा
सब ने समझा हमें वैसा जिसे जैसा भाया
और जो हम थे वही तो न ज़माना समझा।
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